मंगलवार, 10 जनवरी 2017

= विन्दु (२)९० =

 
॥ दादूराम सत्यराम ॥
**श्री दादू चरितामृत(भाग-२)** 
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥

**= विन्दु ९० =**

**= टहटड़ा पधारना =** 
सत्संग में बैठे हुये रामदास ने पूछा - स्वामिन् ! सच्चा सेवक कौन कहा जाता है ? तब दादूजी ने कहा - 

**= रामदास के प्रश्न का उत्तर =** 
"दादू जब लग राम है, तब लग सेवक होय । 
अखंडित सेवा एक रस, दादू सेवक सोय ॥" 
जब तक राम अपने से भिन्न भासता है तब तक निरंतर भक्ति करते हुये सेवक बना रहना चाहिये । जो सेवक अखंडित सेवा से सेव्य में एक रस होकर मिल जाय, वही सच्चा सेवक है । फिर ऊधो ने पूछा - स्वामिन् ! भक्त प्रामाणिक कब माना जाता है ? तब प्रामाणिक संत दादूजी ने कहा - 

**= ऊधो के प्रश्न का उत्तर =**
"दादू जैसा राम है, तैसी सेवा जाणि ।
पावेगा तब करेगा, दादू सो परमाणि ॥" 
जैसे राम अखंड हैं, वैसे ही अखंड सेवा करने से राम की प्राप्ति होती है । ऐसा जानकार जो निरंतर भक्ति करेगा, वह राम को अवश्य प्राप्त करेगा, और जो राम को प्राप्त कर लेता है, वही प्रामाणिक भक्त माना जाता है । फिर केशव ने पूछा स्वामिन् ! सेवक ब्रह्मानन्द को कब प्राप्त करता है ? तब सदा ब्रह्मानन्द का अनुभव करने वाले महान् संत दादूजी ने कहा - 

**= केशव के प्रश्न का उत्तर =** 
"सांई सरीखा सुमिरण कीजे, सांई सरीखा गावे । 
सांई सरीखी सेवा कीजे, तब सेवक सुख पावे ॥  
जैसे परमात्मा सच्चिदानन्द स्वरूप हैं, वैसे ही सच्चिदानन्द रूप से उनका स्मरण करना चाहिये तथा जैसे परमात्मा के बल प्रभावादि अपार हैं, वैसे ही उनका यश - गान करना चाहिये । परमात्मा अखंड हैं, उनकी भक्ति भी अखंड ही करना चाहिये । जब उक्त रीति से कीर्तन, स्मरण और प्रीति करता है, तब सेवक ब्रह्मानन्द को प्राप्त कर लेता है । उक्त प्रकार टहटड़ा के भक्तों ने अच्छा सत्संग किया । फिर टहटड़ा से दौसा के भक्तों ने आग्रह से दौसा पधारे । 
(क्रमशः)

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