शुक्रवार, 6 जनवरी 2017

= १९७ =

卐 सत्यराम सा 卐
ज्ञानी पंडित बहुत हैं, दाता शूर अनेक ।
दादू भेष अनन्त हैं, लाग रह्या सो एक ॥ 
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साभार ~ Chetna Kanchan Bhagat

पहला प्रश्न :
मैं वर्षों से पूजा कर रहा हूं मगर हाथ कुछ नहीं आया। तीर्थ व्रत यात्रा सब कर चुका हूं पर निष्फल। क्या मैं ऐसे ही अकारण जीऊंगा और अकारण ही मर जाऊंगा?

आनंददास, सत्संग के बिना कोई पूजा नहीं है। सदगुरु के बिना कोई मंदिर का द्वार खुलेगा नहीं। पूजा तुमने की होगी बहुत, वह क्रियाकांड ही रही। पंडितों से सीखी होगी पूजा, और पंडित वे हैं जिन्हें स्वयं भी पूजा का कोई पता नहीं। शास्त्रों से सीखी होगी पूजा, शास्त्रों में शब्द हैं निश्चित, लेकिन सत्य नहीं। तुम लाश को ढोते रहे, तुम्हारा जीवंत व्यक्तित्व से संस्पर्श नहीं हुआ।

कृष्ण से मिलो तो नाच सकोगे, बुद्ध से मिलो तो ध्यान में उतर सकोगे; और कोई उपाय नहीं है। बुद्ध से तो लोग डरते हैं; कृष्ण से भयभीत हैं। कृष्ण की गीता पढ़ते हैं; बुद्ध की मूर्ति की पूजा करते हैं। मूर्ति में कोई प्राण तो नहीं हैं। मूर्ति निष्प्राण है, पूजा करते—करते तुम भी वैसे ही निष्प्राण हो जाओगे। पत्थरों के साथ रहोगे, पत्थर हो जाओगे। संग—साथ सोच कर करना।
फिर, तुम जो शब्द दोहराते रहे पूजा के नाम पर, उनमें तुम्हारे प्राण की अनुगूंज थी? तुम्हारे प्राण बोले थे? जिस ईश्वर को जाना नहीं, देखा नहीं, पहचाना नहीं, उस ईश्वर की तरफ जुड़े हुए हाथ सच कैसे हो सकते हैं? वे हाथ झूठे थे, वे हाथ पाखंड थे। इसलिए पूजा व्यर्थ गई।

पूजा कभी व्यर्थ नहीं जाती; निष्प्राण पूजा व्यर्थ जाती है। किन मंदिरों में तुमने पूजा की थी? किन तीर्थों में गए? उन मंदिरों में विराजमान था कोई? वे मंदिर खाली पड़े हैं। लोग तो मंदिरों में जाते ही तब हैं जब मंदिर खाली हो जाते हैं। जब तक मंदिरों में कोई दीया जलता है तब तक लोग दूर—दूर रहते हैं। दीये से डर लगता है। लपट पकड़ सकती है। दीये के पास तो पतंगे जा सकते हैं सिर्फ—मतवाले, दीवाने, पागल—जो अपने को निछावर कर सकें। कायर तो बाहर—बाहर होते हैं, जब तक दीया जलता है। जैसे ही दीया बुझा कि कायरों का मंदिरों में प्रवेश हो जाता है। फिर वे खूब घंटनाद करते हैं, आरतियां उतारते हैं। अब कोई भय नहीं है, अब भय का कोई कारण ही नहीं है।

जब नदी पूर पर होती है, बाढ़ पर होती है, तब तो तुम निकट नहीं आते; जब सूख ही जाती है नदी और रेत—ही—रेत रह जाती है, तब तुम अपनी नौका उतारते हो; फिर नौका आगे नहीं सरकती तो परेशान होते हो। फिर दोष नौका को देते हो। किसी बाढ़ में आई नदी का साथ खोजा होता, तो पूजा भी हो गई होती, प्रार्थना भी हो गई होती। किसी भरे मंदिर में गए होते, जहां मुहम्मद अभी जीवित हों, जहां कुरान अभी पैदा होती हो, जहां गोरख की वाणी अभी जग रही हो, जहां गोरख का अलख अभी जग रहा हो, ऐसी कोई जगह गए होते।
ओशो ~ मरो है जोगी मरो–(गोरख नाथ)

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