सोमवार, 2 जनवरी 2017

= १८९ =

卐 सत्यराम सा 卐
साधु अंग का निर्मला, तामें मल न समाइ ।
परम गुरु प्रकट कहै, ताथैं दादू ताइ ॥ 
=========================
***गुरू***

गुरु का अर्थ है : ऐसा व्यक्ति जो अभी कारागृह में है और मुक्त हो गया है। उसकी भी नाव किनारे आ लगी है। जल्दी ही वह भी यात्रा पर निकल जाएगा। थोड़ी देर और वह किनारे पर है। वह तुम्हारे ही जैसा है; लेकिन अब तुमसे बिलकुल भिन्न हो गया है। तुम जहां खड़े हो, वहीं वह खड़ा है। जल्दी ही तुम उसे वहां न पाओगे; क्योंकि जिसके पंख पूरे खुल गए, जिसकी उड़ने की तैयारी पूरी हो गई और जिसने स्वतंत्रता का स्वाद भी चख लिया, अब वह ज्यादा देर परतंत्रता में न रुक सकेगा। थोड़ी देर और, वह अपनी नाव पर सवार हो जाएगा। फिर वह भी कारागृह के बाहर होगा।

**तो गुरु का क्या अर्थ है ?**
गुरु का अर्थ है : ऐसी मुक्त हो गई चेतनाएं जो ठीक बुद्ध और कृष्ण जैसी हैं, लेकिन तुम्हारी जगह खड़ी हैं—तुम्हारे पास। कुछ थोड़ा सा ऋण उनका बाकी है—शरीर का, उसके चुकने की प्रतीक्षा है। बहुत थोड़ा समय है यह।
बुद्ध को चालीस वर्ष में ज्ञान हुआ। चालीस वर्ष वे और रुके। उन चालीस वर्षों में उनके शरीर के जो ऋण शेष थे, वे चुक गए। ऋण चुकते ही नाव खुल जाएगी। फिर तुम उन्हें खोज न पाओगे। फिर वे जैसे धुआं विलीन हो जाता है आकाश में, ऐसे ही विलीन हो जाएंगे। जैसे गंध उड़ जाती शून्य में, वैसे वे उड़ जाएंगे। फिर तुम उन्हें कहीं भी खोज न पाओगे। फिर तुम्हें कहीं उनकी रूपरेखा न मिलेगी। फिर उनका स्पर्श संभव न होगा।

मुक्त हो जाने के बाद शरीर का ऋण चुकाने की जो थोड़ी सी घड़ियां हैं, उन थोड़ी ही घड़ियों में गुरु का उपयोग हो सकता है। फिर तुम लाख महावीर को चिल्लाते रहो, फिर तुम लाख बुद्ध को पुकारते रहो—बहुत सार्थकता नहीं है। सदगुरु का अर्थ है: मध्य के बिंदु पर खड़ा व्यक्ति, जिसका पुराना संसार समाप्त हो गया, नया शुरू होने को है। पुराने का आखिरी हिसाब—किताब बाकी है—वह हुआ जा रहा है; जैसे ही वह पूरा हो जाएगा...। भीतर से तो बात समाप्त हो गई; लेकिन शरीर के संबंध उतने जल्दी समाप्त नहीं होते। शरीर पैदा हुआ था सत्तर साल या अस्सी साल जीने को। मां—बाप के शरीर से उसे अस्सी साल जीने की क्षमता मिली थी; और व्यक्ति चालीस साल में मुक्त हो गया, तो शरीर की क्षमता चालीस साल और शरीर को बनाए रखेगी। अब वह जिएगा मृत्यु की भांति: यहां होगा और नहीं होगा।

गुरु एक पैराडॉक्स है, एक विरोधाभास है: वह तुम्हारे बीच और तुमसे बहुत दूर; वह तुम जैसा और तुम जैसा बिलकुल नहीं; वह कारागृह में और परम स्वतंत्र। अगर तुम्हारे पास थोड़ी सी भी समझ हो तो इन थोड़े क्षणों का तुम उपयोग कर लेना, क्योंकि थोड़ी देर और, फिर तुम लाख चिल्लाओगे सदियों-सदियों तक, तो भी तुम उसका उपयोग न कर सकोगे। .................ओशो
सुन भई साधो--प्रवचन--18

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें