शुक्रवार, 6 जनवरी 2017

= अथ विन्दु (२)९० =


॥ दादूराम सत्यराम ॥
**श्री दादू चरितामृत(भाग-२)** 
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥

**= अथ विन्दु ९० =** 

**= बसी सत्संग =** 
फिर वहां बसी में ही अन्य भक्तों ने संत सेवा तथा सत्संग रूप चौथी लीला करवाई थी । वे मुख्य - मुख्य भक्त ये थे - सूर हरि, टीकम, दामोदर और दामोदर के सहोदर भाई बालहरि ये अच्छे गुणवान थे । पीपाठाकुर, प्रयाग, वैराग्यवान् दयालदास, चरणदास, जमुनाबाई ये सब ही दादूजी के ज्ञान को अपनी बुद्धि में दृढ़ता से धारण करने वाले थे और जनगोपालजी भी राहोरी से यहां आ गये थे । उक्त सभी ने मिलकर अच्छा सत्संग किया था । सत्संग के समय सूरहरि ने दादूजी से पूछा - स्वामिन् ! साधक ब्रह्म धाम को कब प्राप्त होता है ? तब परम अनुभवी संत प्रवर दादूजी महाराज ने कहा - 

**= सूरहरि के प्रश्न का उत्तर =** 
"सब घट मुख रसना करे, रटे राम का नाम । 
दादू पीवे राम रस, अगम अगोचर ठाम ॥" 
संपूर्ण शरीर के रोम कूपों को मुख और संपूर्ण रोमों को जिह्वा बनाकर राम - नाम का जप करे और जप से होने वाले आनन्द - रस का पान करे तो मन से परे, इन्द्रियातीत ब्रह्म - धाम को प्राप्त होने में कोई भी संशय नहीं रहता है । फिर टीकम ने पूछा - स्वामिन् ! साधक को मुख से प्रभु का नाम उच्चारण करने की इच्छा कब नहीं होती है ? तब दादूजी महाराज ने कहा - 

**= टीकम के प्रश्न का उत्तर =**
"अंतर गति हरि हरि करे, तब मुख की हाजत१ नांहिं । 
सहजैं ध्वनि लागी रहै, दादू मन ही मांहिं ॥" 
जब साधक हृदय में निरंतर हरि हरि करता रहता है और मन में भी स्वाभाविक ध्वनि लगी रहती है, तब साधक को मुख से जाप करने की इच्छा१ नहीं होती है । फिर दामोदर ने पूछा - स्वामिन् ! नख शिख स्मरण कब होता है ? और पांचों ज्ञानेन्द्रिय प्रभु - परायण कब होती है ? दामोदर का उक्त प्रश्न सुनकर दादूजी ने यह साखी बोली - 

**= दामोदर के प्रश्न का उत्तर =** 
"दादू मन चित सुस्थिर कीजिये, तो नख शिख स्मरण होय । 
श्रवण नेत्र मुख नासिका, पंचों के पूरे सोय ॥" 
अन्य स्मरण और अन्य चिन्तन त्याग कर निरंतर मन से तथा चित्त से एक ईश्वर का ही स्मरण चिन्तन होना, मन की तथा चित्त की स्थिरावस्था है । इसको प्राप्त करो फिर अपने आप ही नख से शिखा पर्यन्त स्मरण होने लगेगा । जो नख - शिख स्मरण करता है वही अपनी श्रवण, नेत्र, रसना, नासिका और त्वचा इन पाँचो को प्रभु परायण कर पाता है । फिर बाल हरि ने पूछा - स्वामिन् ! निर्गुण तथा सगुण ब्रह्म दोनों का दर्शन सुगमता से कैसे हो ? वह उपाय बताइये । तब दादूजी महाराज ने कहा - 

**= बालहरि के प्रश्न का उत्तर =** 
"दादूराम नाम से मिल रहै, मन के छाड़ विकार । 
तो दिल ही मांहीं देखिये, दोनों का दीदार ॥" 
यदि मन के कामादिक संपूर्ण विकारों को त्याग करके वृत्ति का राम - नाम से अभेद हो जाय तब तो सगुण, निर्गुण ब्रह्म के दर्शन अपने हृदय में ही हो जाते हैं । 
(क्रमशः)

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