सोमवार, 20 मार्च 2017

= निष्कामी पतिव्रता का अंग =(८/९१-३)


#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
*श्री दादू अनुभव वाणी* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*= निष्कामी पतिव्रता का अँग ८ =* 
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फल कारण सेवा करे, याचे त्रिभुवनराव । 
दादू सो सेवक नहीं, खेले अपना दाव ॥९१॥ 
जो लोक साँसारिक भोग रूप फल के लिए ही भक्ति करते हैं और त्रिभुवनपति परमात्मा से स्त्री, पुत्र, धनादि की याचना करते हैं वे निष्काम पतिव्रत युक्त भक्त नहीं हैं । वे तो जुआरी के समान अपना दांव खेल रहे हैं । जैसे जुआरी पासे की इच्छानुसार सँख्या आते ही पैसे मांग लेता है, वैसे ही समय आने पर भगवान् से भोग पदार्थ मांग लेते हैं, वे भक्ति नहीं करते, भक्ति का ढोंग ही करते हैं । 
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सहकामी सेवा करैं, मांगैं मुग्ध१ गंवार । 
दादू ऐसे बहुत हैं, फल के भूँचनहार ॥९२॥ 
सकामी जन भक्ति करते हैं तब फलाशा से मोहित१ होकर वे मूर्ख भगवान् से साँसारिक भोग ही मांगते हैं । ऐसे ही भक्त सँसार में बहुत मिलते हैं जो भक्ति करके साँसारिक भोग ही मांगते हैं । 
*स्मरण नाम माहात्म्य*
तन मन ले लागा रहे, राता सिरजनहार । 
दादू कुछ मांगै नहीं, ते विरला सँसार ॥९३॥ 
९३ - ९४ में नाम - स्मरण का माहात्म्य कह रहे हैं - शरीर और मन को सँयम द्वारा अनुचित कर्म और भावनाओं से उठकर विश्व रचयिता भगवान् के भजन में रत रहता है और कुछ भी नहीं मांगता, ऐसा निष्काम भक्त सँसार में कोई विरला ही होता है । ऐसा होना नाम - स्मरण का ही माहात्म्य है ।
(क्रमशः)

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