मंगलवार, 14 मार्च 2017

= निष्कामी पतिव्रता का अंग =(८/७३-५)


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卐 सत्यराम सा 卐 
*श्री दादू अनुभव वाणी* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*= निष्कामी पतिव्रता का अँग ८ =* 
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खेत न निपजे बीज बिन, जल सींचे क्या होइ ।
सब निष्फल दादू राम बिन, जानत हैं सब कोइ ॥७३॥
पृथ्वी में बीज नहीं डाले और जल निरँतर डाले तो क्या होगा ? परिश्रम ही होगा, खेत तो निपजेगा नहीं । वैसे ही निष्काम पतिव्रत - साधन द्वारा राम - भजन किये बिना सभी बहिरँग साधन तीर्थादि राम का साक्षात्कार कराने में सफल नहीं हो सकते, यह बात सन्त विद्वान् आदि सभी जानते हैं ।
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दादू जब मुख माँहीं मेलिये, तब सबही तृप्ता होइ । 
मुख बिन मेले आन दिश, तृप्ति न माने कोइ ॥७४॥ 
जब सात्विक भोजन का ग्रास मुख में रखा जाता है, तब इन्द्रियाँ मनादि सभी तृप्त होते हैं और मुख को छोड़कर दूसरे नाक - कानादि द्वारों में ग्रास रखा जाय तो किसी की भी तृप्ति नहीं होगी, उलटी हानि की सँभावना रहती है । वैसे ही यह जीव अपनी वृत्ति परब्रह्म में रक्खे तो गुरु, सन्त, देवादि सभी की तृप्ति होगी और स्वयँ मुक्त होगा । अन्य किसी में रखता है तो तृप्ति के स्थान में जन्मादि क्लेश ही पाता है । अत: वृत्ति ब्रह्म में ही रखनी चाहिए । 
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जब देव निरंजन पूजिये, तब सब आया उस माँहिं । 
डाल पान फल फूल सब, दादू न्यारे नाँहिं ॥७५॥
जैसे वृक्ष का मूल सींचने में डाल, पत्र, फूल, फलादि सभी का पोषण होता है, उन्हें अलग नहीं सींचा जाता, वैसे ही निष्काम पतिव्रत पूर्वक निरंजन देव की ब्रह्म - चिन्तन रूप पूजा की जाती है तब देवादि उपासना और सम्पूर्ण साधन उसी में आ जाते हैं, साध्य प्राप्ति के लिए अन्य साधन करने की आवश्यकता नहीं रह जाती । 
(क्रमशः)

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