सोमवार, 13 मार्च 2017

= विन्दु (२)९४ =

#daduji
॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू चरितामृत(भाग-२)* 
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*= विन्दु ९४ =*
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*= भेष चिन्ह =* 
फिर उस समय दादूजी महाराज के शिष्य समूह ने अपने में से मोहनजी, गरीबदासजी, और टीलाजी इन तीन संतों को बाह्य भेष चिन्ह नियत करने के लिये नियुक्त किया । फिर उक्त तीनों संतों ने अपनी अपनी कुटियाओं में जाकर बाह्य भेष चिन्ह बनाये । गरीबदासजी ने चोला बनाया, मोहनजी ने टोपा बनाया और टीलाजी ने कपाली गोल टोपी बनाई । तीनों ही महानुभावों ने बनाकर शिष्य सभा के मध्य विराजे हुये दादूजी महाराज के आये उक्त तीनों रख दिये । 
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दादूजी महाराज ने उन तीनों ही वस्तुओं को स्वीकार करके कहा - यह तीनों चिन्ह ही अच्छे हैं, मैं इन तीनों को ही धारण करता हूँ और आप सब भी श्वेत वस्त्र और ऐसा ही बाह्य भेष धारण करें । फिर उक्त तीनों चिन्हों को सब शिष्यों ने धारण करना आरम्भ कर दिया । दादूजी महाराज मुण्डन कराते थे, इसलिये सब शिष्य भी मुण्डन कराने लग गये किन्तु बड़े सुन्दरदासजी तो पंच केश रखते थे इससे उन्हें उक्त चिन्हों की आवश्यकता भी नहीं थी । वे तो स्वरूप से ही राजर्षि प्रतीत होते थे । 
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नारायणा के दादू पंथ के आचार्य उत्सवों में अब तक भी वैसा चोला और वैसा ही टोपा धारण करते हैं और कुछ - कुछ वृद्ध संत अब तक कपाली टोपी भी धारण करते थे किन्तु अब उक्त भेष चिन्ह समाज से प्रायः उठते ही जा रहे हैं । उक्त प्रकार बाह्य भेष चिन्ह नियुक्त हुये थे । 
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*= धाम निर्माण परिचय =* 
फिर बाग को पीछे रखकर तालाब के तट पर एक मास में दादूजी महाराज के लिये चूना पत्थर की भजनशाला बनाई गई । उसकी नींव बैशाख बदी अष्टमी को एक पहर दिन चढ़े लगाईं गई थी । फिर दादूजी महाराज उसमें विराज कर भजन - ध्यान करने लगे पश्चात् शिष्य संतों के लिये अन्य कुटियायें बनाई गई । उक्त धाम का द्वार नारायण विन्दु सरोवर के तट पर रखा गया था । पीछे पास ही में बाग और आगे पास ही में नारायण विन्दु सरोवर होने से धाम स्वाभाविक ही रमणीक बन गया था। फिर उसमें विक्षिप्त हृदय मानवों को परमशांति देने वाले उच्चकोटि के संतों का निवास होने से उसकी शोभा अकथनीय ही हो गई थी । 
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आने वाले साधक संत तथा सर्व साधारण जनता के लोग भी वहां आकर परमशांति का अनुभव करते थे । महानुभाव संतों के दर्शन करके ही वे अपने घर के दुःखों को भूल जाते थे और संतों के प्रभु - परायण बनाने वाले वचनों को सुनकर सबके हृदयों में आनन्द की लहरें उठने लगती थीं । आस - पास के ग्रामों के लोगों को दर्शनों के लिये आना जाना बना ही रहता था । थोड़े ही दिनों में दादूजी महाराज के नारायणा नगर के नारायण अश्रु विन्दु सरोवर के तट पर स्थायी निवास की सूचना दूर - दूर तक जा पहुँची थी । 
(क्रमशः)

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