卐 सत्यराम सा 卐 
**श्री दादू अनुभव वाणी** टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
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**= निष्कामी पतिव्रता का अँग ८ =** 
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दादू मनसा वाचा कर्मना, हरिजी सौं हित होइ ।
साहिब सन्मुख संग है, आदि निरंजन सोइ ॥४६॥
जिसका मन - वचन - कर्म से भगवान् में प्रेम होता है, भगवान् उस पर अनुकूल रह कर उसका योग - क्षेम करते रहते हैं और जो सँसार के आदि निरंजन देव ब्रह्म हैं, वे तो सदा उसके संग ही रहते हैं=उसे निरँतर ब्रह्म का साक्षात्कार होता रहता है ।
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दादू मनसा वाचा कर्मना, आतुर कारण राम । 
समरथ सांई सब करे, परकट पूरे काम ॥४७॥ 
जो मन - वचन - कर्म से निरंजन राम के साक्षात्कारार्थ व्याकुल रहता है, उसके सन्मुख समर्थ भगवान् प्रकट होकर उसकी सम्पूर्ण कामनायें पूर्ण करते हैं । 
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नारी पुरुषा देखि कर, पुरुषा नारी होइ । 
दादू सेवक राम का, शीलवँत है सोइ ॥४८॥ 
जो नारी पर - पुरुष को नारी रूप देखकर अपने मन को पति - परायण रखती है और जो पुरुष पर - नारी को पुरुष रूप देख कर एक - पत्नी व्रत पालता है, वे शीलवान् कहलाते हैं । वैसे ही जो अपनी वृत्ति एक ब्रह्म से भिन्न किसी में भी नहीं जाने देता, वही निष्काम - पतिव्रत युक्त राम का भक्त कहलाता है । 
(क्रमशः)

 
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