सोमवार, 6 मार्च 2017

= ११२ =

卐 सत्यराम सा 卐
बाव भरी इस खाल का, झूठा गर्व गुमान ।
दादू विनशै देखतां, तिसका क्या अभिमान ॥ 
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साभार ~ Girdhari Agarwal

*आध्यात्मिक शिक्षाप्रद कथा ~ सेठ को शिक्षा*

एक बहुत धनी सेठ था | वह सुबह जल्दी उठकर नदी में स्नान करके घर आकर नित्य-नियम करता था | ऐसे वह रोजाना नहाने नदी पर आता था | एक बार एक अच्छे संत विचरते हुए वहाँ घाट पर आ गये | उन्होंने कहा - 'सेठ ! राम-राम !' वह बोला नहीं तो बोले - 'सेठ ! राम-राम !' ऐसे दो-तीन बार बोलने पर भी सेठ 'राम-राम' नहीं बोला | सेठ ने समझा कि कोई मांगता है |
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इसलिये कहने लगा - 'हट ! हट ! चल, हट यहां से |' संत देखा कि अभिमान बहुत बढ़ गया है, भगवान् का नाम भी लेता | मैं तो भगवान् नाम लेता हूं और यह हट-हट कहता है | 
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इन धनी आदमियों के वहम रहता है कि हमारे से कोई कुछ मांग लेगा, कुछ ले लेगा | इसलिये धनी लोग सबसे डरते रहते हैं | वे गरीब से, साधु से, ब्राह्मण से, राज्य से, चोरों से, डाकुओं से डरते हैं | अपने बेटा-पोता ज्यादा हो जाएंगे तो धन का बंटवारा हो जाएगा - ऐसे भी डर लगता है उन्हें |
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संत ने सोचा कि इसे ठीक करना है | तो वे वैसे ही सेठ बन गए और सेठ बनकर घर पर चले गये | दरबान ने कहा कि 'आज आप जल्दी कैसे आ गये ?' तो उन्होंने कहा कि 'एक बहुरुपिया मेरा रूप धरके वहाँ आ गया था, मैंने समझा कि वह घर पर जाकर कोई गड़बड़ी नहीं कर दे | इस लिए मैं जल्दी आ गया | तुम सावधानी रखना, वह आ जाय तो उसे भीतर मत आने देना |'
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सेठ घर पर जैसा नित्य-नियम करता था, वैसे ही वे सेठ बने हुए संत भजन-पाठ करने लग गये | अब वह सेठ सदा की तरह धोती और लोटा लिए आया तो दरबान ने रोक दिया | 'कहाँ जाते हो? हटो यहाँ से !' सेठ बोला - 'तूने भाँग पी ली है क्या ? नशा आ गया है क्या ? क्या बात है ? तू नौकर है मेरा, और मालिक बनता है |' दरबार ने कहा-हट यहां से, नहीं जाने दूंगा भीतर |' सेठ ने छोरों को आवाज दी - 'आज इसको क्या हो गया ?' तो उन्होंने कहा - बाहर जाओ, भीतर मत आना |' बेटे भी ऐसे ही कहने लगे | जिसको पूछे, वे ही धक्का दें | सेठ ने देखा कि क्या तमाशा हुआ भाई ? मुझे दरवाजे के भीतर भी नहीं जाने देते हैं | बेचारा इधर-उधर घूमने लगा |
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अब क्या करें ? उसकी कहीं चली नहीं जाती तो उसने राज्य में जाकर रिपोर्ट दी कि इस तरह आफत आ गयी | वे सेठ राज्य के बड़े मान्य आदमी थे | राजा ने उमको जब इस हालत में देखा तो कहा - 'आज क्या बाट है ? लोटा, धोती लिए कैसे आये हो ? तो वह बोला - 'कैसे-कैसे क्या महाराज ! मेरे घर में कोई बहुरुपिया बनकर घुस गया और मुझे निकल दिया बाहर |' राजा ने कहा - 'चार घोड़ो की बग्घी में आया करते थे, आज आपकी यह दशा !' राजा ने अपने आदमियों से पूछा - 'कौन है वह ? जाकर मालूम करो |' घर पर खबर गयी तो घरवालों ने कहा कि 'अच्छा ! वह राज्य में पहुंच गया ! बिलकुल नकली आदमी है वह | हमारे सेठ तो भीतर विराजमान है | राजा ने जाकर कहा - 'सेठ को कहो कि राजा बुलाते है |' अब सेठ चार घोड़ो की बग्घी लगाकर ठाट-बाट से जैसे जाते थे, वैसे ही पहुंचे और बोले - 'अन्नदाता ! क्यों याद फरमाया, क्या बात है ?'
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राजाजी बड़े चकराये कि दोनों एक-से दिख रहे हैं | पता कैसे लगे ? मंत्रियों से पूछा तो वे बोले - 'साहब, असली सेठ का कुछ पता नहीं लगता !' तब राजा ने पूछा - 'आप दोनों में असली और नकली कौन है ?' तो कहा - 'परीक्षा कर लो |' जो संत सेठ बने हुए थे बता देंगे |' बही मंगायी गयी| जो सेठ बने हुए संत थे, उन्होंने बिना देखे ही कह दिया कि 'अमुक-अमुक वर्ष में अमुक मकान में इतना खर्च लगा, इतना घी लगा, अमुक के ब्याह में इतना खर्चा हुआ | वह हिसाब अमुक बही में, अमुक जगह लिखा हुआ है |' वह सब-का-सब मिल गया | सेठ बेचारा देखता ही रह गया | उसको इतना याद नही था | इससे यह सिद्ध हो गया कि वह सेठ नकली है | तो कहा कि - 'इसे दंड दो |' पर संत के कहने से छोड़ दिया |
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दूसरे दिन फिर वह धोती और लोटा लेकर गया | वहाँ वही संत बैठे थे | उस सेठ को संत ने कहा - 'राम-राम !' तब उसकी आँखे खुली कि यह सब इन संत का चमत्कार है | संत ने कहा - 'तुम भगवान् का नाम लिया करो, हरेक का तिरस्कार, अपमान मत करो | जाओ, अब तुम अपने घर जाओ |' वह सेठ सदा की तरह चुपचाप अपने घर आ गये |

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