मंगलवार, 28 मार्च 2017

= मन का अंग =(१०/४-६)

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
*श्री दादू अनुभव वाणी* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*मन का अँग १०*
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जहां तैं मन उठ चले, फेरि तहां ही राखि । 
तहं दादू लै लीन कर, साध कहैं गुरु साखि ॥ ४ ॥ 
४ - ५ में मनोनिग्रह का उपाय बता रहे हैं - साधक ! जिस आत्मा की सत्ता प्राप्त करके यह मन अपनी अप्रकट अवस्था से प्रकट होकर विषयों की ओर चले, तब इसको विषयों से पीछे लौटा कर तथा इसकी अप्रकटावस्था में ही इसे रोककर, आत्म चिन्तन द्वारा उसी आत्मा के स्वरूप में लीन कर । मन को जीतने वाले सँत मनो - निग्रह का यही उपाय कहते हैं और सद्गुरु की भी इसमें साक्षी है । 
थोरे थोरे हठ किये, रहेगा ल्यौ लाइ । 
जब लागा उनमनि सौं, तब मन कहीं न जाइ ॥ ५ ॥ 
४ में बताई हुई रीति से किंचित २ रोकने का अभ्यास शनै: - शनै: करते रहने से मन अपनी वृत्ति आत्म - स्वरूप ब्रह्म में लगाकर रहने लगेगा । इस प्रकार अभ्यास की प्रौढ़ावस्था में जब सहजावस्था रूप उनमनी नामक समाधि में लगेगा, तब उस अवस्था को छोड़ कर यह मन साँसारिक विषयों के किसी भी प्रदेश में नहीं जायगा । इस लोक और स्वर्ग के भोगों की इच्छा न करेगा, निरँतर ब्रह्म में ही लीन रहेगा । 
आडा दे दे राम को, दादू राखे मन । 
साखी दे सुस्थिर करे, सोई साधू जन ॥ ६ ॥ 
६ - ७ में मनोनिग्रह करने वाले श्रेष्ठ साधक का परिचय दे रहे हैं - जो विषयों में जाते हुये मन का राम - नाम - स्मरण रूप आड़ लगा कर स्वस्थान में ही रोक लेता है और गुरु - वेदादि के ज्ञान - वैराग्य प्रधान वचन साक्षी द्वारा समझा कर सम्यक् ब्रह्म में ही स्थिर करता है, वही श्रेष्ठ सँत है ।
(क्रमशः)


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