शनिवार, 25 मार्च 2017

= १४९ =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
सुख दुख मन मानै नहीं, आपा पर सम भाइ ।
सो मन ! मन कर सेविये, सब पूरण ल्यौ लाइ ॥ 
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साभार ~ Chetna Kanchan Bhagat

बुद्ध एक गांव के बाहर ठहरे हैं। हजारों भिक्षु—भिक्षुणियां उनके पास हैंट मिलने आया है। पास आकर उसे शक होने लगा। आम्र - कुंज है, उसके बाहर आकर उसने अपनी वजीरों को कहां कि मुझे शक होता है, इसमें कुछ धोखा तो नहीं है? क्योंकि तुम कहते थे कि हजारों लोग वहां ठहरे है, लेकिन आवाज जरा भी नहीं हो रही है। जहां हजारों लोग ठहरे हो और तुम कहते हो, बस यह जो आम की कतार है, इसके पीछे के ही वन में वे लोग ठहरे है। जरा भी आवाज नहीं है, मुझे शक होता है। उसने अपनी तलवार बाहर खींच ली। उसने कहां, इसमें कोई षड़यंत्र तो नहीं? उसके वजीरों ने कहां, आप निश्‍चित रहें, वहां सिर्फ एक ही आदमी बोलता है, बाकी सब चुप है। वहा बुद्धके सिवाय वहां कोई बोलता ही नहीं। और जंगल में शांति है, क्योंकि बुद्ध नहीं बोल रहे होंगे, और तो वहां कोई बोलता ही नहीं।
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मगर वह जो सम्राट था, उसका नाम था, अजातशत्रु। नाम भी हम बड़े मजेदार देते हैं, जिसका कोई शत्रु पैदा न हुआ हो। हालांकि शांति में भी उसे शत्रु दिखायी पड़ता है, सन्नाटे मैं भी। लेकिन वह तलवार निकाले ही गया। जब उसने देख लिया हजारों भिक्षु बैठे है चुपचाप, बुद्ध एक वृक्ष की छाया में बैठे है, तब उसने तलवार भीतर की। तब उसने बुद्ध से पहला प्रश्‍न यही पूछा,इतनी चुप्पी, इतना मौन क्यों है? इतने लोग हैं, कोई बात - चीत नहीं, कोई चर्चा नहीं, दिन - रात ऐसे बीत जाते है? बुद्ध ने कहा, ये लोग मेरे पास होने के लिए यहां है। अगर ये बोलते रहें तो ये अपने ही पास होंगे। 
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ये अपने को मिटाने को यहां आये है। ये यहां है ही नहीं। बस इस जंगल में जैसे मैं ही हूं और ये सब मिटे हुए शून्य हैं। ये अपने को मिटा रहे हैं। जिस दिन ये पूरे बिखरे जायेंगे उस दिन ही ये मुझे पूरा समझ पायेंगे। और जो मैं इनसे कहना चाहता हूं वह इनके मौन में ही कहां जा सकता है। और अगर मैं शब्द का भी उपयोग करता हूं तो वह यही समझाने के लिए कि वे कैसे मौन हो जाये। शब्द का उपयोग करता हूं मौन में ले जाने के लिए, फिर मौन का उपयोग करूंगा सत्य में ले जाने के लिये। शब्द से कोई सत्य में ले जाने का उपाय नहीं है। शब्द से, मौन में ले जाया जा सकता है।
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बस शब्द की इतनी ही सार्थकता है कि आपकी समझ में आ जाये कि चुप हो जाना है। फिर सत्य में ले जाया जा सकता है। सामीप्य का यह अर्थ है।
महावीर वाणी, 
भाग-१, प्रवचन-२६, ओशो

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