मंगलवार, 11 अप्रैल 2017

= मन का अंग =(१०/३४-६)


#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
*श्री दादू अनुभव वाणी* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*मन का अँग १०*
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*विषय - अतृप्ति*
दादू जनि विष पीवे बावरे, दिन दिन बाढ़े रोग ।
देखत ही मर जाइगा, तज विषया रस भोग ॥३४॥
३४ में विषय - रस त्याग की प्रेरणा कर रहे हैं - हे अज्ञात तत्व मानव ! विषय - विष को क्यों पान करता है ? इससे कभी भी तृप्ति नहीं होती । प्रत्युत अधिक भोग प्रवृत्ति से प्रति दिन रोगों की वृद्धि ही होती है और रोग से पीड़ित होकर देखते - देखते शीघ्र ही मर जायगा । अत: परमसुख चाहता है तो विषय - रस का उपभोग त्याग करके मनोनिग्रह पूर्वक भगवद् भजन कर ।
*मन हरि भावन*
दादू सब कुछ विलसताँ, खाताँ पीताँ होइ ।
दादू मन का भावता, कह समझावे कोइ ॥३५॥
३५ - ३८ में मन और हरि को प्रिय लगने वाली बातों का विचार कर रहे हैं - अखाद्य खाते हुये, अपेय के पीते हुए, इसी प्रकार निषिद्ध विहित सभी भोगों को भोगते हुये भगवद् दर्शन हो जाते हैं, ये बातें मन को प्रिय लगने वाली हैं । कोई भगवद् भक्ति हीन दूर्जन ही ऐसी उलटी बातें कह कर भोले लोगों को अशुद्ध मार्ग चलना समझाते हैं ।
दादू मन का भावता, मेरी कहै बलाइ१ ।
साच राम का भावता, दादू कहै सुन आइ ॥३६॥

मन को प्रिय लगने वाली बातें हमारी विचार धारा से विपरीत व्यक्ति ही कहेगा, हम विपत्ति१ के समय भी नहीं कहेंगे । हम तो राम को प्रिय लगने वाली सँयमता पूर्वक - भक्ति, वैराग्य, ज्ञानादि दैवीगुणों की सत्य - सत्य बातें ही कहते हैं । यदि सँयमी बनना चाहते हो तो आकर श्रवण करो ।
(क्रमशः)

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