शनिवार, 1 अप्रैल 2017

= उक्त अनूप(ग्रन्थ ७/१२-३) =


🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= उक्त अनूप१ (ग्रन्थ ७) =*
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*= सत्वगुण की वृत्ति =*
कोउक सात्विक शुद्ध ह्वै, सब तैं भयो उदास ।
दुहूँ लोक को त्याग करि, मुक्ति हेत जिज्ञास ॥१२॥
पर शुद्ध सात्विक वृत्तिवाला पुरुष उपर्युक्त चेष्टाओं से विरत रहता है । वह नश्वर इन्द्रलोक या सत्यलोक की कामना न कर, मोक्षप्राप्ति के लिये प्रयत्न प्रारम्भ करता है ॥१२॥
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*= शिष्य की शंका =*
उनि सद्गुरु कौं आइ कैं, पूछ्यौ यह सन्देह ।
मैं हौं कौंन कृपाल ह्वै, दूर करौ भ्रम येह ॥१३॥
उस सात्विक पुरुष ने खोजते-खोजते किसी प्रकार सद्गुरु को पा लिया । उनके श्रीचरणों में अपना मस्तक टिकाकर अपनी तत्व जिज्ञा सा प्रकट की कि प्रभो ! मैं कौन हूँ ? आप कृपा करके मेरा यह भ्रम, मेरी या जिज्ञासा दूर करने का कष्ट कीजिये ॥१३॥
(क्रमशः)

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