शनिवार, 8 अप्रैल 2017

= उक्त अनूप(ग्रन्थ ७/१८-९) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*= उक्त अनूप१ (ग्रन्थ ७) =*
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*= साधना-विधि =*
*शुद्ध हृदय सुनि मनन करि, निदिध्यास पुनि होइ ।*
*याही साधन साधि कै, भयौ वस्तुमय सोइ ॥१८॥*
उस शिष्य ने शुद्ध हृदय से गुरुपदेश सुना, श्रद्धा विश्वास के साथ मनन-निदिध्यासन किया । इन साधनों से अभ्यास करते-करते एक दिन वह ब्रह्ममय हो गया ॥१८॥
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*शुद्ध हृदय मैं ठाहरै, यह सद्गुरु कौ ज्ञान ।*
*अजर वस्तु कौं जारि कैं, होइ रहै गलतान ॥१९॥*
सद्गुरु द्वारा बताया ज्ञानोपदेश किसी श्रद्धालु तथा विश्वासी व्यक्ति के शुद्ध हृदय में ही ठहर सकता है । मुश्किल से पचनेवाली वस्तु को अपने अन्दर पचाकर(दुष्कर गुरुपदेश को आत्मसात् कर) वह आनन्दमग्न हो गया ॥१९॥
(क्रमशः)

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