गुरुवार, 13 अप्रैल 2017

= अद्भुत उपदेश(ग्रन्थ ८/७-८) =


🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= अद्भुत उपदेश(ग्रन्थ ८) =*
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*= पितामह का स्वरूप =*
*ताकौं भूल्यौ आतमा, मन सुत सौं हित दीन ।*
*ताके सुख सुख पावई, ताके दुख दुख कीन ॥७॥*
उसका पुत्र जीवात्मा उसको(उसके गुणों को, उसकी विशेषताओं को) भूल कर अपने पुत्र मन तथा पौत्र इन्द्रियों के कार्य-कलापों में ही रस लेने लगा । और बेवकूफी से अपनी स्थिति यह बना ली कि किसी विषय से वे दुःखी हो तो वह अपने को दुःखी मानने लगा और वे किसी विषय से सुखी हों तो अपने को सुखी मानने लगा ॥७॥
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*= पिता का स्वरूप =*
*मन हित बंध्यौ पंच सौं, लपटि गयौ तिनि संग ।*
*पिता आपनौ छाडि कै, रच्यौ सुतनि कै रंग ॥८॥*
इसी तरह मन तो अपने पाँचों पुत्रों(इन्द्रियों) के मोह में और भी अधिक फँस गया और उन्हीं में आसक्त हो गया । वह (मन) अपने पिता(जीवात्मा) की कुल-मर्यादा छोड़कर पुत्रों के क्रियाकलाप में ही रच-पच गया ॥८॥
(क्रमशः)

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