#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*मन का अँग १०*
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दादू मन शुध साबित आपना, निश्चल होवे हाथ ।
तो इहां ही आनन्द है, सदा निरंजन साथ ॥ २५ ॥
यदि अपना मन शुद्ध और सम्यक् निश्चल होकर अपने अधीन रहे तो इस वर्तमान शरीर में ही निरँतर निरंजन ब्रह्म के साथ अभेद होने से प्राप्त होने वाला ब्रह्मानन्द प्राप्त हो सकता है ।
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जब मन लागे राम सौं, तब अनत काहे को जाइ ।
दादू पाणी लौंण ज्यों, ऐसे रहे समाइ ॥ २६ ॥
जब मन निष्काम कर्मों द्वारा शुद्ध और भगवद् भजन द्वारा स्थिर होकर निरंजन राम के स्वरूप में लीन होगा तब राम को छोड़कर अन्य साँसारिक विषयादि में किस लिये जायगा ? सुख की अभिलाषा को लेकर जाता है, सो परम - सुख उसे वहां ही प्राप्त है । इसलिए अन्य में जाने का उसे अवसर ही नहीं मिलता । वह तो जैसे नमक जल में एक होकर रहता है वैसा ही ब्रह्म में समाकर रहता है ।
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करुणा
सो कुछ हम तैं ना भया, जापर रीझे राम ।
दादू इस सँसार में, हम आये बेकाम ॥२७॥
२७ - ३२ में मनोनिग्रह में असफल साधक का
पश्चात्ताप दिखा रहे हैं - जिस मनोनिग्रह पूर्वक भक्ति रूप साधना पर राम प्रसन्न
होते हैं वह तो हमसे कुछ भी नहीं हो सकी, इसलिए इस सँसार में मानव शरीर धारण करके हमारा आना व्यर्थ
ही हुआ ।
(क्रमशः)
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