रविवार, 30 अप्रैल 2017

= १४ =

卐 सत्यराम सा 卐
सब आया उस एक में, डाल पान फल फूल ।
दादू पीछे क्या रह्या, जब निज पकड़या मूल ॥ 
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साभार ~ Anand Nareliya

परमात्मा से साधारण इस संसार में और कुछ भी नहीं है, 
क्योंकि परमात्मा सारे अस्तित्व की श्वास है,
और क्या इससे साधारण होगा? 
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झरने में झरना है, वृक्ष में वृक्ष है, पक्षी में पक्षी है मनुष्य में मनुष्य है - स्त्री में स्त्री, पुरुष में पुरुष, बच्चे में बच्चा, बूढ़े में बूढ़ा - परमात्मा तो सब पर फैला हुआ स्वाद है पापी में परमात्मा पापी है और पुण्यात्मा में परमात्मा पुण्यात्मा है, नर्क में परमात्मा नारकीय और स्वर्ग में स्वर्गीय है, और क्या साधारण बात होगी?
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छुद्रतम में वही विराजमान है और विराटतम में वही विराजमान है, अणु से अणु में भी वही और अनंत से अनंत में भी वही, परमात्मा से ज्यादा साधारण और क्या बात होगी, क्योंकि परमात्मा सार्वभौम है निर्विशेष है। यही तो अष्टावक्र ने कल कहा - निर्विशेष, कोई विशेषण नहीं है, कोई विशिष्टता नहीं है...
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लेकिन हम परमात्मा को ऊपर रखना चाहते हैं - सबसे ऊंची चीज, उसी दुनिया की श्रृंखला में जहां धन, पद, प्रतिष्ठा, इन सबके बाद, सबके ऊपर परमात्मा है, इस तरह हम सोचते हैं हम परमात्मा का बड़ा आदर कर रहे हैं, हम परमात्मा के साथ धोखा कर रहे हैं....
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महाघटना मत कहो ! यह घटना बड़ी साधारण है, और यह घटना ऐसी है कि घटने वाली नहीं है, घट चुकी है, तुम चाहे जागो और चाहे तुम न जागो, परमात्मा तुम्हारे भीतर विराजमान है, तुम चाहे मानो, चाहे न मानो, अंगीकार करो, न अंगीकार करो, परमात्मा तुम्हारे भीतर मौजूद है, तुम्हारी मौजूदगी उसकी ही मौजूदगी की छाया है, परछाईं। 
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वही है, तुम तो केवल परछाईं हो, जैसे आदमी धूप में चलता है तो छाया बनती, ऐसे परमात्मा के चलने से अनेक - अनेक रूप बनते, रूप तो परछाईं है, अरूप की परछाईं है रूप, निराकार की परछाईं है आकार, शून्य की परछाईं है शब्द, शांति की परछाईं है संगीत, मूल दिखायी नहीं पड़ रहा है, तुम छाया में उलझ गये हो, जरा जागकर, चौंककर, हिलकर देखो, तुम पाओगे तुम मूल हो....
osho 
अष्‍टावक्र: महागीता(भाग - ६) प्रवचन - ९०

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