मंगलवार, 9 मई 2017

= पच्ञप्रभाव(ग्रन्थ ९/३-४)

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= पच्ञप्रभाव(ग्रन्थ ९) =*
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*देखे जोगी जंगमा, संन्यासी अरु जैंन ।*
*वै तो मन मानैं नहीं, करते देखे फैंन ॥३॥*
उसने जगह-जगह आश्रम-मठ, मन्दिरों में जाकर जोगी, जंगम, संन्यासी, जैन आदि साधुओं को देखा-परखा, उनमें से उसको कोई भी अपने योग्य पुरुष नहीं जँचा; क्योंकि वे सभी भगवद्भक्ति न कर पाखण्ड का ही पालन कर रहे थे ॥३॥
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*षट दरसन पुनि देखिया, देखे सोफी सेख ।*
*तेऊ मन आये नहीं, देखे सारे भेख ॥४॥*
इसी तरह बाद में षड्दर्शन के अखाड़ों में भी पहुँची, उनको भी परखा । सूफी, सेख आदि मुस्लिम फकीरों की तरफ भी गयी, पर उनमें से उसे कोई भी नही जँचा । यद्यपि धीरे-धीरे करके उसने सभी सम्प्रदायों की टोह ले ली ॥४॥
(क्रमशः)

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