मंगलवार, 9 मई 2017

= ३१ =

卐 सत्यराम सा 卐
सो घर सदा विचार का, तहाँ निरंजन वास ।
तहँ तूँ दादू खोजि ले, ब्रह्म जीव के पास ॥ 
जहँ तन मन का मूल है, उपजे ओंकार ।
अनहद सेझा शब्द का, आतम करै विचार ॥ 
आदि शब्द ओंकार है, बोलै सब घट माँहि ।
दादू माया विस्तरी, परम तत्त यहु नांहि ॥ 
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*प्रश्न :- ॐ क्या है, कृपया व्याख्या करें ?*

उत्तर :- ॐ एक गहरा रहस्य है, जिसे जिया जा सकता है, जाना जा सकता है, लेकिन उसे कहना, समझाना या व्याख्या संभव नहीं है, ॐ को चेतना की गहराई में प्रवेश करके अनुभव किया जासकता हैं, कि अस्तित्व में प्रत्येक घटना के आधार में नाद है, एक रहस्यमय संगीत है, जब कोई व्यक्ति जन्म लेता है, या उसकी मृत्यु होती है, तब भी एक आकाशीय संगीत गूंजता है, जिसमें उस व्यक्ति की कार्मिक यात्रा के साथ ही उसके संभावी जीवन की समस्त रूपरेखा छिपी होती है, जो भी सवेदनशील व अतीन्द्रिय व्यक्ति इस संगीत को सुनने में सक्षम होता है, वो उस व्यक्ति के जीवन के बारे में सटीक इशारे कर सकता है, इसी प्रकार कोई भी घटना घटे तो उसके साथ ही एक संगीत जन्म लेता है, लम्बे समय तक साधकों और सिद्धों ने इस रहस्य का अवलोकन किया और पाया कि गहरी आध्यात्मिक घटनाओं का एक विशेष संगीत है, इसे नाद भी कह सकते हैं, अनुगूंज भी कह सकते हैं, गहरे साधकों और सिद्धों ने पाया कि जब आकार विलीन होते हैं, सीमायें विदा होती हैं, व्यक्तित्व विसर्जित होता है, शरीर और मन के बंधन व ग्रंथियां तिरोहित हो जाती हैं, और चेतना अनादि व अनंत स्रोत में प्रवेश कर जाती है, तब भी एक संगीत अनुभव में आता है। 
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यह संगीत शेष समस्त संगीत से भिन्न और अतुलनीय होता है, यही अनाहत नाद है, यह अकारण है, शाश्वत है, सारे सृजन का स्रोत है, इस अनाहत नाद या ॐ को तब अनुभव किया जाता है जब शरीर, मन और चेतना लयबद्ध होकर जागतिक लय से एकाकार हो जाते हैं, जब द्वैत का जगत समाप्त होता है और अद्वैत प्रकट होता है, जब हम साक्षी के आकाश में स्थित हो जाते हैं और जीवन बस एक लीला मात्र रह जाता है, यह ॐ तो अहर्निश गूँज रहा है, यह अक्षर है अर्थात इसका क्षय नहीं होता, इस क्षर जीवन से अक्षर जीवन में प्रवेश कर जाना ही अध्यात्म का उद्देश्य है, स्वयं के भीतर के शांत, स्थिर, मौन, निस्तरंग, निरुद्देश्य, अकारण, अनादि व अनंत केंद्र में प्रवेश कर जाना ही एक मात्र साधना है। 
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और यह साधना है ॐ में प्रवेश कर जाना, ऊपर इस केंद्र को या इस अवस्था को बताने के लिए जितने भी शब्दों का उपयोग किया गया है उसे बस एक ॐ कहकर ही कह दिया जाता है। इसीलिए सिद्धों ने इस ॐ के प्रतीक को खोजा कि व्यर्थ में बहुत कुछ कहने के बजाय बस साधक से इतना कहना पर्याप्त है, कि ॐ को खोजो या ॐ में प्रवेश कर जाओ। ॐ कह दिया तो जो कुछ सारभूत है वो कह दिया, अब बस उसका ही विस्तार होगा. यही सिद्धों और सद्गुरुओं की अंतर्दृष्टि रही। 
ॐ जय सनातन।

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