मंगलवार, 9 मई 2017

= विन्दु (२)१०० =

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॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू चरितामृत(भाग-२)* 
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*= विन्दु १०० =*
महोत्सव के सभी स्थानों में तथा सारे नगर में और आसपास के ग्रामों में जहां तहां दादूजी महाराज की जय जयकार का ही शब्द सुनने में आता था । फिर महोत्सव के अंत के दिनों में अनेक राजा महाराजाओं के कार्यकर्ता वस्त्र ले ले कर आये थे उन्होंने बहुत से वस्त्र गरीबदासजी के भेंट किये और कुछ अपनी इच्छा अनुसार भी संतों को पहनाये । कहा भी है - “सन्तन को पहरावनी दीन्हीं ।” फिर गरीबदासजी ने नारायणा नरेश नारायणसिंह और उनके मंत्री कपूरचन्द को बुलाकर कहा - अब आप सब संतों को चद्दर बाँटने की तैयारी करो, वस्त्र बहुत आये है, वे संतों को बाँट ही देने हैं । अतः संतों ले लिये ऐसी व्यवस्था करो एक - एक संत को चार - चार गज की दो - दो चादर दो, एक मोटी और एक महीन । वैसे ही सबको दो दो कटि वस्त्र, कौपीन की जोड़ी और जल छानना । इतना इतना वस्त्र प्रत्येक संत को दो और जो महन्त संत आये हैं उनको क्या भेंट लगती है वह भी उनके काथानानुसार दे दी जाय । 
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महन्त संतों के साथ ऊँट, घोड़े, रथ आदि आये उनकी सेवा घास दांणा आदि की यहां तो होती ही रही थी किन्तु मार्ग के लिये घास दांणा आदि के लिये खर्च सबको दे देना है और उनके रथादिकों के चलाने वालों को भी यथा योग्य कुछ रूपये दे देना चाहिये । मेरा तात्पर्य यह है कि दादूजी महाराज के भण्डारे में आये हुये सब ही लोगों को प्रसन्न करके विदा किया जाय । दादूजी महाराज की कृपा से धनराशि की कोई कमी नहीं है, बहुत धन इस महोत्सव के फिर निमित्त आया है और आप लोग किसी भी प्रकार बर्ताओ, कम नहीं पडेगा । 
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फिर नारायणसिंहजी ने अपने मंत्री कपूरचन्द की ओर देखते हुये कहा - स्वामीजी की आज्ञा का पालन बहुत ही सावधानी के साथ करना है । तब कपूरचन्द ने कहा - महाराज ! स्वामीजी की आज्ञा है, आपका भी निर्देश है तथा दादूजी महाराज की सेवा है । इसमें रती मात्र भी कमी नहीं रहेगी । मैं आज ही वस्त्रों की व्यवस्था में अनेक कर्मचारी लगा देता हूं । गरीबदासजी ने वस्त्र भंडार की जिसके पास चाबी थी उनको बुलाकर कपूरचन्द को वह ताली देने का आदेश दिया और कहा - आप भी इनको पूरा पूरा सहयोग देना, उदास नहीं हो जाना । उनने कहा - स्वामीजी महाराज ये समय उदासीन रहने का तो नहीं है । इस समय तो जिससे जितनी सेवा हो वह थोड़ी मानकर अधिक करने की चेष्टा प्रत्येक व्यक्ति कर रहा है, मैं उदासीन कैसे रह सकूंगा । 
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इस समय तक दादूजी महाराज के प्रायः सभी शिष्य भक्त जो आसकते थे आगये थे । सुन्दरदासजी दौसा वाले भी अपने माता पिता को साथ लेकर नारायणा आ गये थे । फिर कपूरचन्द ने वस्त्र भंडार में अनेक दर्जियों को लगाकर चार चार गज की चादर जो पहनने में पूरी बैठे ऐसे मांप से फड़वा कर तैयार कराली । कटि - वस्त्र, कौपीन, जल छानने सब एक माप के तैयार करा लिये गये । फिर जितने भी संत आये थे उन सब को एक महीन और एक मोटी चादर कट - वस्त्र, कौपीन जल छानना इतने वस्त्र प्रत्येक व्यक्ति को उनके आसनों पर ही लेजाकर दे दिये जिस से बांटने के समय भीड़ भाड़ भी न हो सके, शांति से सब को पूरा पूरा वस्त्र मिल जाय । फिर जो लोग जिनके पास वस्त्र नहीं थे उन लोगों को भी गरीबदासजी ने सब को वस्त्र देने की आज्ञा दी और उनकी आज्ञा के अनुसार सब को वस्त्र दिये गये । कहा भी है - “ज्यों वन-पत्र चैत झड़ जाई ।” अर्थात् जैसे पतझड़ के समय वृक्षों के पत्ते झड़ जाते हैं किन्तु वसंत ऋतु पुनः सब पत्ते प्रदान करती है, वैसे ही गरीबदासजी ने सब को वस्त्र दिये थे । और आज्ञा दे दी थी कि महोत्सव के समाप्ति के पांच दिन आगे तक जब भी जो वस्त्र मांगे उसे देते रहना । 
(क्रमशः)

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