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॥ दादूराम सत्यराम ॥
॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू चरितामृत(भाग-२)*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*= अथ विन्दु ९९ =*
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*= देवताओं द्वारा दादूजी का स्वागत =*
फिर इधर दादूजी महाराज के स्वागत के लिये दादूजी के सामने देवता आये उनका परिचय जनगोपालजी ने इस प्रकार दिया है -
“ब्रह्मा विष्णु महेश्वर आये,
साधु-सिद्ध सन्मुख हो धाये ॥
गण गंधर्व मिल मंगल गाये,
भये सनाथ जु दर्शन पाये ॥”
(वि. १५)
ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों देवता परम भागवत ब्रह्म स्वरूप सनक मुनीश्वर के अवतार दादूजी के सामने आये और नारादि साधु, कपिलादि सिद्ध भी आये । मंगल गान में अति निपुण गंधर्व देवता दादूजी के सामने आकर मंगल गीत गाने लगे तथा सभी देवता ब्रह्मस्वरूप महान् संत दादूजी के दर्शन करके अपने को सनाथ मानने लगे । संत गुण सागर ग्रंथ में भी ऐसा ही वर्णन है देखिये ~
- इन्दव -
“शक्र महेश मिले विषणू विधि,
गंधर्व गावत है सुर साजे ।
शारद गंग गणेश सबै सुर,
धन्य कहैं सुख लोक निवाजे ॥
शारद सिद्धि खड़ी रिधियाँ सिध,
देव बजावत दुंदुभी बाजे ।
इच्छा होय करो तहँ आसन,
सेव सदा पद पंकज राजे ॥”
(तरंग २३)
सेव सदा पद पंकज राजे ॥”
(तरंग २३)
इन्द्र, महेश, विष्णु, ब्रह्मा, ये देवता दादूजी के स्वागतार्थ दादूजी के सामने आये । गंधर्व देवता अपने गान के साज(बाजा आदि) लेकर आये और मंगल गीत गाने लगे । वाणी की अधिष्ठात्री सरस्वतीजी, पाप विनाशनी गंगाजी, विघ्न विनाशक गणेशजी आदि सभी देवता दादूजी के स्वागतार्थ दादूजी के सामने आये और अपने मुख-कमलों से कहने लगे आपने अनन्त प्राणियों को उपदेश देकर ईश्वर के सम्मुख किया है । अतः आप को अनन्त धन्यवाद है । अब आपने हम लोगों पर कृपा की है, अतः हम भी आप परम भागवत ब्रह्म स्वरूप संतजी का दर्शन करके धन्य हो गये हैं ।
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सरस्वतीजी सामने खड़ी हुई अपने मन में सोच रही थीं कि इन महानुभाव संतजी ने मेरे कार्य में बहुत सहयोग दिया है । मैं प्राणियों को उपासना से सद्बुद्धि देती हूं किन्तु इन परमभागवत महात्माजी ने सब में समबुद्धि रखते हुये सर्व को ही उपदेश द्वारा सद्बुद्धि प्रदान करके भगवत् परायण बनाने की महान् चेष्टा की है । अतः इनको कोटि धन्यवाद है ।
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सिद्धियाँ सोच रही थीं कि इन महात्माजी की सेवा में हम सदा ही रहती थीं किंतु इन्होंने अपनी प्रतिष्ठा के लिये हमारा दुरूपयोग नहीं किया था । अतः इन्हें अनन्त धन्यवाद हैं ।
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ऋद्धियां सोच रही थीं कि - इन महानुभाव संतजी को हम सदा प्राप्त थीं किंतु इन्होंने हमारा दुरूपयोग न करके सबको संयमता से रहने रहने का ही उपदेश किया था । अतः इनको कोटि धन्यवाद है ।
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सिद्धगण अपने मनों में यह सोचकर हर्षित हो रहे थे कि दादूजी ने निष्काम भाव से निरंजन राम की भक्ति करके तथा अपने संपर्क में आने वालों से भक्ति कराकर के हम सिद्धों की प्रतिष्ठा बढ़ाई है । निष्कामभाव से प्रभु भक्ति करने कराने के कारण ये सिद्ध शिरोमणि हैं । अतः इनको अनन्त धन्यवाद हैं ।
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उक्त प्रकार सब देवता दादूजी को धन्यवाद देते हुये हर्ष से नगाड़े बजा रहे थे और प्रार्थना कर रहे थे कि आपकी जहां इच्छा हो उसी लोक में अपना आसन लगाइये । आपके लिये सभी लोकों के के द्वार खुले हुये हैं । जहां भी आप विराजेंगे, वहा के सब देवता आपके चरण-कमलों कि सेवा में सदा उपस्थित रहेंगे, आज्ञा दीजिये ।
(क्रमशः)
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