बुधवार, 10 मई 2017

= मन का अंग =(१०/१२१-३)

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
*श्री दादू अनुभव वाणी* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*मन का अँग १०* 
जहं के सुनाये सब सुनें, सोई श्रवण सयान ।
जहं के दिखाये देखिये, सोई नैन सुजान ॥१२१॥
जिसकी सत्ता से श्रवणेन्द्रिय सब कुछ सुनती है, उसी ब्रह्म के स्वरूप सम्बन्धी कथा सुनने में जिस चतुर मानव के श्रवण संलग्न हैं, वे श्रवण श्रेष्ठ हैं । जिसकी सत्ता से नेत्रेन्द्रिय देखती है, उसी ब्रह्म को सर्वत्र देखता है, उस बुद्धिमान् मानव के ही नेत्र श्रेष्ठ हैं । वे ब्रह्ममय ही श्रवण और नेत्र हैं ।
दादू मन ही माया ऊपजे, मन ही माया जाइ ।
मन ही राता राम सौं, मन ही रह्या समाइ ॥१२२॥
मन के अबोध से ही मन में माया और मायिक प्रपँच उत्पन्न होकर सत्य - सा दीख रहा है और मन में यथार्थ ज्ञान होते ही माया निज कार्य सहित मन से हट जाती है=मन आसक्ति रहित हो जाता है । फिर तो मन अपने आप ही निरँजन राम में अनुरक्त होकर उसी में समाया हुआ रहता है ।
मन ही मरणा ऊपजे, मन ही मरणा खाइ ।
मन अविनाशी ह्वै रह्या, साहिब सौं ल्यौ लाइ ॥१२३॥
सकाम मन से ही कर्मों द्वारा जन्म - मरणादि होते हैं और निष्काम मन ज्ञान प्राप्ति द्वारा जन्म - मरणादि के कारण अज्ञान को नष्ट करके निरँतर परब्रह्म में अपनी वृत्ति लगाता हुआ अविनाशी ब्रह्मरूप होकर रहता है ।
(क्रमशः)

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