बुधवार, 10 मई 2017

= विन्दु (२)१०० =

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॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू चरितामृत(भाग-२)* 
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*= विन्दु १०० =*
भक्तजन जो, गिरी, छुहारे, लौंग, मिठाई आदि लाते थे, वह रात्रि को आने वाली सामग्री रात्रि को और दिन में आते थे वे पदार्थ दिन को ही बांट दिये जाते थे । परमेश्वर को ऐसा ही प्रिय लगता था । सामग्री जितनी खर्च करते थे उतनी ही अधिक आती थी । न तो पहले संचित करके रक्खा और न अब आगे रखना चाहते थे । जब आवश्यकता होती थी तब ही चिन्तामणि रूप हरि भेजते रहते थे । अपने भक्तों के कार्य को हरि अपना कार्य मान कर ही करते रहते हैं और भक्तों को यश दिला देते हैं । अपने विरुद की रक्षा के लिये हरि ने सबके हृदयों में प्रेरणा करके सब काम कराये थे और गरीबदासजी को शोभा दे दी थी । 
वही दादूजी महाराज ने भी कहा है - 
“आप अकेला सब करे, औरों के शिर देय । 
दादू शोभा दास को, अपना नाम न लेय ॥” 
फिर बाहर से आये हुये अन्य संप्रदायों के महन्तों ने, अकबर, मानसिंह, करोली, जोधपुर, बीकीनेर आदि के मंत्रियों ने, बीरबल के तथा अन्यान्य सेठों के मुनीमों आदि सब ने मिलकर कहा - अब बहुत समय हो गया है । एक मास मेला की सीमा आप लोगों ने रक्खी थी सो भी समाप्त होने वाली ही है । अतः दादूजी महाराज की गद्दी पर जिनको बैठाना हो उनको बैठाकर मेला समाप्त करना चाहिये । अब हम लोग अधिक नहीं ठहर सकते हैं और विचरने वाले संतों को भी अब यहां से शीघ्र रामत करना है । उनके चातुर्मास का समय भी समीप आ रहा है, वे भी तो अपने माने हुये स्थानों पर जायेंगे ही । किसी का दूर देश में है, अतः जाने में समय भी लगेगा ही । 
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तब दादूजी महाराज के शिष्यों ने कहा - हम लोगों ने गद्दी के अधिकारी का चुनाव तो दादूजी महाराज के ब्रह्मलीन होने के समय ही कर लिया था । गद्दी पर गरीबदासजी को ही बैठाया जायगा । फिर सब संतों ने मिलकर गरीबदासजी को बैठाने कि तैयारी की और समय नियत करके सब को सूचना करवा दी कि आज सायं काल छः बजे गरीबदासजी को दादूजी महाराज की गद्दी पर बैठाया जायगा सो ठीक समय सब सज्जन पधार ने की कृपा अवश्य करैं । फिर उस दिन राम चौक में चार बजे से ही संकीर्तन आरंभ कर दिया गया । एक विशाल तखत पर गद्दी लगा दी गई । फिर बाहर से आये हुये अन्यान्य संप्रदायों के महन्तों के लिये सभा में उचित आसन लगा दिये गये और उन को पद्धति के अनुसार सत्कार पूर्वक बुलवाया गया । साढ़े पांच बजे ही जो चादरैं उढाने वाले महन्त, संत तथा अकबर, मानसिंह, आदि के मंत्री, बीरबल का कार्यकर्त्ता तथा अन्यान्य सेठों के मुनीम दुशाले और इच्छानुसार भेंटे लेकर आ गये । 
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*= गरीबदासजी को गद्दी =*
फिर पूजा की सामग्री तैयार करके ठीक छः बजे गरीबदासजी को उठा कर गुरु गद्दी पर बैठाया और उच्च स्वर से सबने स्वामी दादूदयालु महाराज की जै बोली । उक्त प्रकार गुरु गद्दी पर गरीबदासजी को बैठाकर सब महन्त, संत अपने - अपने अधिकार के अनुसार चादरें गरीबदासजी को उढ़ाते हुये गरीबदासजी के तिलक करने लगे । कहा भी है - 
“सब संतन मिल टीको कीन्हों । 
गुरु को आसन बैठन दीन्हों ॥” 
फिर अकबर के आये हुये हिन्दू मन्त्री ने संतों के समान दुशाला उढ़ाकर गरीबदासजी के तिलक किया और बहुत सी मोहरें भेंट की । फिर सब राजाओं के मन्त्रियों ने उक्त प्रकार ही किया । नारायणा नरेश नारायणसिंह ने अति उत्तम दुशाला अपने हाथों से ही उढ़ाकर तिलक किया पश्चात् बाहर के आये हुये छोटे-छोटे राजा लोग और सेठों तथा सेठों के मुनीमों ने भी उक्त प्रकार ही चादर की प्रथा के अनुसार चादरें उढ़ाई । फिर आस पास के ग्रामों के लोग भी अपनी-अपनी श्रद्धा के अनुसार चादरें भेंट करने लगे । चादरों को उढ़ाने का कार्य सम्पात हो गया । तब दादूजी महाराज के शिष्यों ने पुनः दादूजी महाराज की जय बोलकर सबको शांत होकर बैठने की प्रार्थना की । 
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सब शांत भाव से बैठ गये । तब जगजीवनजी ने सभा को संभोधित करते हुये कहा - आज से हम गरीबदासजी महाराज की आज्ञा में रहेंगे । अब हमारे समाज के शिर मौर गरीबदासजी महाराज हैं । दादूजी महाराज के जितने भी सेवक भक्त हैं, उन सबको चाहिये कि वे गरीबदासजी महाराज को अपने समाज के आचार्य मानकर इनका सम्मान दादूजी महाराज के ही समान किया करें । फिर जगजीवनजी ने गरीबदासजी महाराज की जय बोली तब सब समाज ने उनके साथ अति उच्चस्वर से गरीबदासजी महाराज की जै बोली और नोबतें भी बजने लगीं, संतों के रणसिंहे, नागफनिया आदि बाजों की ध्वनि ने आकाश को भर दिया । 
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फिर भूरि मात्रा में आये हुए मेवों और मिठाई का प्रसाद बाँटने के लिये अनेक संत तथा भक्त खड़े हो गये और सबको शाँतिपूर्वक प्रसाद बाँट दिया गया । फिर दादू दयालुजी की तथा गरीबदासजी की जय-जयकार करते हुये सभा विसर्जन हो गई । संत लोग अपने-अपने आसनों पर जाकर भगवान् की आरती अपनी-अपनी पद्धति के अनुसार करने कगे ।
(क्रमशः)

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