गुरुवार, 18 मई 2017

= पच्ञप्रभाव(ग्रन्थ ९/२१- २२)

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
.
*= पच्ञप्रभाव(ग्रन्थ ९) =*
.
*कुल मरजादा सब तजी, तजी लोक की लाज ।*
*सुन्दर ताकी नीच गति, कीयौ बहुत अकाज ॥२१॥*
उसने बेशर्म होकर अपनी सभी कुलमर्यादाएँ तोड़ डाली, निर्लज्ज होकर इधर-उधर घूमने लगा । महाराज कहते हैं - उसकी चाल-ढाल, रहन-सहन इतने निम्नस्तर तक पहुँच गये कि उसके कारण उसका साधारण जीवन-यापन करना भी मुश्किल हो गया ॥२१॥
.
*= निष्कर्ष =*
*ऐसो भेद बिचारि करि, भक्ति मांहि मन देउ ।*
*माया सौं मिलि जाहु जिनि, इहै सीख सुनि लेउ ॥२२॥*
(महाराज कहते हैं -) मायादासी के संग का यह कुफल समझकर सन्तों को भक्ति* की तरफ ही मन रखना चाहिये, यदि वे अपना व कुल का मान-सम्मान तथा हित चाहते हैं ॥२२॥
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें