卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*माया का अँग १२*
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दादू नैनहुं भर नहिं देखिये, सब माया का रूप ।
तहं ले नैना राखिये, जहं है तत्व अनूप ॥ १३ ॥
यह जो भी बाह्य दृष्टि से दिखाई दे रहा है, सब माया का ही रूप है । इसे सत्य समझकर अनुराग पूर्ण दृष्टि से नहीं देखना चाहिए । जहां हृदय में उपमा रहित ब्रह्म तत्व आत्म रूप से स्थित है, वहां ही निरन्तर अपने विचार रूप नेत्र रखने चाहिए ।
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हस्ती, हय, वर, धन, देखकर, फूल्यो अँग न माइ ।
भेरि१ दमामा२ एक दिन, सब ही छाड़े जाइ ॥ १४ ॥
हे अज्ञानी ! तू हाथी, घोड़े, दल - बल, सुवर्णादि धन और द्वार पर बड़े - बड़े ढोल१ तथा नगारे२ बजते देखकर फूल रहा है, अपने शरीर में भी नहीं समाता, किन्तु याद रख, एक दिन सबको छोड़कर चला जायगा ।
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दादू माया बिहड़े देखताँ, काया संग न जाइ ।
कृत्रिम१ बिहड़े बावरे, अजरावर ल्यौ लाइ ॥ १५ ॥
हे अज्ञानी ! तेरा मायिक ऐश्वर्य देखते - देखते ही तुझसे अलग हो जायगा वो नष्ट हो जायेगा । यह तेरा सुन्दर शरीर भी साथ नहीं जायगा । जो भी माया कृत नकली१ ऐश्वर्य स्वर्गादि लोकों में है, वह भी सब सदा साथ नहीं रहता, नष्ट होने वाला ही है । अत: सदा साथ रहने वाले इन्द्रादि देवों से भी श्रेष्ठ परब्रह्म में ही अपनी वृत्ति लगा ।
(क्रमशः)
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