बुधवार, 31 मई 2017

= माया का अंग =(१२/३३-५)

#daduji 

卐 सत्यराम सा 卐 

*श्री दादू अनुभव वाणी* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*माया का अँग १२*
*माया*
दादू नगरी चैन सब, जब इक राजी होइ । 
दोइ राजी दुख द्वन्द्व में, सुखी न बैसे कोइ ॥ ३३ ॥ 
३३ - ३४ में कहते हैं - अन्त:करण में मायिक प्रभाव रहने से दु:ख ही होता है - कायानगरी में जब एक विवेक का ही राज्य होता है तब तो सुख शाँति रहती है । जब विवेक और महा मोह दोनों का राज्य होता है, तब दोनों राजाओं में द्वन्द्व - युद्ध चलते रहने से इन्द्रिय अन्त:करणादि प्रजा में से कोई भी सुख से नहीं बैठ सकता । 
इक राजी आनन्द है, नगरी निश्चल बास । 
राजा प्रजा सुखि बसें, दादू ज्योति प्रकास ॥ ३४ ॥ 
जब काया नगरी में एक विवेक का ही राज्य होता है, तब काया नगरी हलचल रहित निश्चल बसती है । विवेक नृपति और इन्द्रियादि प्रजा सुख से रहते हैं तथा आत्म - ज्योति का प्रकाश भासते रहने से परमानन्द भी प्राप्त होता है । 
*शिश्न स्वाद* 
जैसे कुंजर काम वश, आप बंधाना आइ । 
ऐसे दादू हम भये, क्यों कर निकस्या जाइ ॥ ३५ ॥ 
३५ - ४१ में कहते हैं - जीव इन्द्रियों के वश होकर ही बंधता है और नष्ट होता है - जैसे हाथी कामवश होकर अपने आप ही बन्धन में आ जाता है । (हाथी को पकड़ने वाले वन में हाथी समा सके, ऐसा खड्डा खोदकर उसे पतली लकड़ी और पत्तों से छाप कर उस पर कागज की हथनी रख देते हैं । उसे सच्छी हथनी जान कर हाथी उस के पास आता है, तब खड्डे में पड़ जाता है, फिर उसे भूख प्यास से कमजोर करके पकड़ लाते हैं) वैसे ही अज्ञानी प्राणी काम की फांसी में फंस जाते हैं । फंसने के पश्चात् निकलना अति कठिन हो जाता है ।
(क्रमशः)

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