मंगलवार, 30 मई 2017

= ७२ =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
पीवत चेतन जब लगै, तब लग लेवै आइ ।
जब माता दादू प्रेम रस, तब काहे को जाइ ॥ ३३० ॥ 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जब तक चेतन कहिए सचेत है, तब तक दीक्षित के यहाँ आकर उपदेश और कलाल के यहाँ आने वाले रस(मदिरा) लेते रहते हैं । जब शिष्य ज्ञानामृत पीता - पीता "मतवाला" अर्थात् तृप्त हो जाता है और मद्य पीने वाला मस्त हो जाता है, तब फिर मद्य बेचने वाले के यहाँ मद्य पीने वाला नहीं जाता है और शिष्य पूर्ण ज्ञान - ग्रस्त होने पर देहाध्यास से मुक्त हो जाता है ॥ ३३० ॥ 
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दादू अंतर आत्मा, पीवै हरि जल नीर ।
सौंज सकल ले उद्धरै, निर्मल होइ शरीर ॥ ३३१ ॥ 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! बाहर शरीर तथा भीतर सम्पूर्ण इन्द्रियाँ और अन्तःकरण, इनको अन्तर्मुख करके साधक परमेश्वर का नाम - स्मरण रूपी अमृत पान करें, तो वे अपने सम्पूर्ण मनुष्य देह की सौंज कहिए, सामग्री को सफल बनाकर अपना उद्धार कर लेते हैं ॥ ३३१ ॥ 
(श्रीदादूवाणी ~ परिचय का अंग)

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