रविवार, 14 मई 2017

= ४१ =

卐 सत्यराम सा 卐
*दादू एक सगा संसार में, जिन हम सिरजे सोइ ।*
*मनसा वाचा कर्मणा, और न दूजा कोइ ॥* 
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साभार ~ Rajnish Gupta

*((((((( प्रभु से रिश्ता )))))))*
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एक गरीब बालक था जो कि अनाथ था। एक दिन वो बालक एक संत के आश्रम मेँ आया और बोला के बाबा आप सबका ध्यान रखते हैं, मेरा इस दुनिया मेँ कोई नहीँ है तो क्या मैँ यहाँ आपके आश्रम मेँ रह सकता हूँ ? बालक की बात सुनकर संत बोले बेटा तेरा नाम क्या हैं ? उस बालक ने कहा मेरा कोई नाम नहीँ है।
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तब संत ने उस बालक का नाम रामदास रखा और बोले की अब तुम यहीँ आश्रम मेँ रहना। रामदास वही रहने लगा और आश्रम के सारे काम भी करने लगा। उन संत की आयु 80 वर्ष की हो चुकी थी। एक दिन वो अपने शिष्यो से बोले की मुझे तीर्थ यात्रा पर जाना हैँ तुम मेँ से कौन कौन मेरे साथ चलेगा और कौन कौन आश्रम मेँ रुकेगा ?
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संत की बात सुनकर सारे शिष्य बोले की हम आपके साथ चलेंगे ! क्योँकि उनको पता था कि यहाँ आश्रम मेँ रुकेंगे तो सारा काम करना पड़ेगा इसलिये सभी बोले की हम तो आपके साथ तीर्थ यात्रा पर चलेंगे। अब संत सोच मेँ पड़ गये की किसे साथ ले जाये और किसे नहीँ क्योँकि आश्रम पर किसी का रुकना भी जरुरी था।
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बालक रामदास संत के पास आया और बोला बाबा अगर आपको ठीक लगे तो मैँ यहीँ आश्रम पर रुक जाता हूं ,,,
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संत ने कहा ठीक है पर तुझे काम करना पड़ेगा आश्रम की साफ सफाई में भले ही कमी रह जाये पर ठाकुर जी की सेवा में कोई कमी मत रखना।
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रामदास ने संत से कहा की बाबा मुझे तो ठाकुर जी की सेवा करनी नहीँ आती आप बता दीजिये के ठाकुर जी की सेवा कैसे करनी है ? फिर मैँ कर दुंगा। संत रामदास को अपने साथ मंदिर ले गये वहाँ उस मंदिर मे राम दरबार की झाँकी थी। श्री राम जी, सीता जी, लक्ष्मण जी और हनुमान जी थे।
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संत ने बालक रामदास को ठाकुर जी की सेवा कैसे करनी है सब सिखा दिया। रामदास ने गुरु जी से कहा कि बाबा मेरा इनसे रिश्ता क्या होगा ये भी बता दो क्योँकि अगर रिश्ता पता चल जाये तो सेवा करने मेँ आनंद आयेगा।
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उन संत ने बालक रामदास कहा की तू कहता था ना की मेरा कोई नहीँ है ... तो आज से ये राम जी और सीता जी तेरे माता-पिता हैँ। रामदास ने साथ मेँ खड़े लक्ष्मण जी को देखकर कहा अच्छा बाबा और ये जो पास मेँ खड़े है वो कौन हैं ? संत ने कहा ये तेरे चाचा जी हैँ और हनुमान जी के लिये कहा कि ये तेरे बड़े भैय्या हैँ। रामदास सब समझ गया और फिर उनकी सेवा करने लगा। संत शिष्योँ के साथ यात्रा पर चले गये।
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आज सेवा का पहला दिन था रामदास ने सुबह उठकर स्नान किया और भिक्षा माँगकर लाया और फिर भोजन तैयार किया फिर भगवान को भोग लगाने के लिये मंदिर आया। रामदास ने श्री राम सीता लक्ष्मण और हनुमान जी आगे एक-एक थाली रख दी और बोला अब पहले आप खाओ फिर मैँ भी खाऊँगा।
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रामदास को लगा कि सच मेँ भगवान बैठकर खायेंगे. पर बहुत देर हो गई रोटी तो वैसी की वैसी थी। तब बालक रामदास ने सोचा नया नया रिश्ता बना हैँ तो शरमा रहेँ होँगे। रामदास ने पर्दा लगा दिया बाद मेँ खोलकर देखा तब भी खाना वैसे का वैसा पडा था।
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अब तो रामदास रोने लगा कि मुझसे सेवा मे कोई गलती हो गई इसलिये खाना नहीँ खा रहेँ हैँ! और ये नहीँ खायेंगे तो मैँ भी नहीँ खाऊँगा और मैँ भूख से मर जाऊँगा..! इसलिये मैँ तो अब पहाड़ से कूदकर ही मर जाऊँगा। रामदास मरने के लिये निकल जाता है तब भगवान राम जी हनुमान जी को कहते हैँ हनुमान जाओ उस बालक को लेकर आओ और बालक से कहो की हम खाना खाने के लिये तैयार हैँ। हनुमान जी जाते हैँ और रामदास कूदने ही वाला होता हैँ की हनुमान जी पिछे से पकड़ लेते हैँ और बोलते हैँ क्याँ कर रहे हो?
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रामदास कहता है आप कौन? हनुमान जी कहते हैँ मैँ तेरा भैय्या हूँ इतनी जल्दी भूल गये? रामदास कहता है अब आये हो इतनी देर से वहा बोल रहा था की खाना खा लो तब आये नहीँ अब क्योँ आ गये?
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तब हनुमान जी बोले पिता श्री का आदेश है अब हम सब साथ बैठकर खाना खायेँगे। फिर राम जी, सीता जी, लक्ष्मण जी, हनुमान जी साक्षात बैठकर भोजन करते हैँ। इसी तरह रामदास रोज उनकी सेवा करता और भोजन करता।
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सेवा करते १५ दिन हो गये एक दिन रामदास ने सोचा कि कोई भी माँ बाप हो वो घर मेँ काम तो करते ही हैँ. पर मेरे माँ बाप तो कोई काम नहीँ करते सारे दिन खाते रहते हैँ. मैँ ऐसा नहीँ चलने दूँगा। 
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रामदास मंदिर जाता है ओर कहता हैँ पिता जी कुछ बात करनी हैँ आपसे। राम जी कहते हैँ बोल बेटा क्या बात है?
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रामदास कहता है कि अब से मैँ अकेले काम नहीँ करुंगा आप सबको भी काम करना पड़ेगा, आप तो बस सारा दिन खाते रहते हो और मैँ काम करता रहता हूँ अब से ऐसा नहीँ होगा। राम जी कहते हैँ तो फिर बताओ बेटा हमेँ क्या काम करना है?
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रामदास कहता है कि अब से मैँ अकेले काम नहीँ करुंगा आप सबको भी काम करना पड़ेगा, आप तो बस सारा दिन खाते रहते हो और मैँ काम करता रहता हूँ अब से ऐसा नहीँ होगा। राम जी कहते हैँ तो फिर बताओ बेटा हमेँ क्या काम करना है?

रामदास ने कहा माता जी अब से रसोई आपके हवाले. और चाचा जी(लक्ष्मणजी) आप सब्जी तोड़कर लाओँगे. और भैय्या जी(हनुमान जी) आप लकड़ियाँ लायेँगे. और पिता जी(रामजी) आप पत्तल बनाओँगे। सबने कहा ठीक है। अब सभी साथ मिलकर काम करते हुऐँ एक परिवार की तरह सब साथ रहने लगे।
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एक दिन वो संत तीर्थ यात्रा से लौटे तो सीधा मंदिर मेँ गये और देखा कि मंदिर से प्रतिमाऐँ गायब हैँ. संत ने सोचा कहीँ रामदास ने प्रतिमा बेच तो नहीँ दी? संत ने रामदास को बुलाया और पूछा भगवान कहाँ गये?
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रामदास भी अकड़कर बोला कि मुझे क्या पता रसोई मेँ कहीं काम कर रहेँ होंगे। संत बोले ये क्या बोल रहा? रामदास ने कहा बाबा मैँ सच बोल रहा हूँ जबसे आप गये हैँ ये चारोँ काम मेँ लगे हुऐँ हैँ।
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वो संत भागकर रसोई मेँ गये और सिर्फ एक झलक देखी कि सीता जी भोजन बना रही हैँ राम जी पत्तल बना रहे हैं और फिर वो गायब हो गये और मंदिर मेँ विराजमान हो गये।
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संत रामदास के पास गये और बोले आज तुमने मुझे मेरे ठाकुर का दर्शन कराया तू धन्य है। और संत ने रो रो कर रामदास के पैर पकड़ लिये...!
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मित्रोँ कहने का अर्थ यही है कि ठाकुर जी तो आज भी तैयार हैँ दर्शन देने के लिये पर कोई रामदास जैसा भक्त भी तो होना चाहीये...
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राम जी हमारे बापू सीता जी मेरी मैय्या है, लक्ष्मण जी है चाचा हमारे हनुमान जी मेरे भैय्या हैँ...
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((((( जय जय श्री राधे )))))
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