🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= पच्ञप्रभाव(ग्रन्थ ९) =*
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*सो तो वृषली पति भयौ, कुलहि लगाई गारि ।*
*जुवती उठि पीहरि गई, वाकौं माथै मारि ॥१९॥*
ऐसा व्यक्ति वर्णाश्रम व्यवस्था के अनुसार शूद्रा स्त्री का पति कहलाता है । उसने दासी के साथ संग करके अपने कुल को भी कलंक लगा दिया । उसकी पत्नी(भक्ति) तो उसके व्यवहार से दुःखी होकर अपने माता-पिता के घर(= पीहर) वापस चली गयी, अब वह उस शूद्रा के साथ रमणकर पाप कमाये और अपना इहलोक परलोक खराब कर अपने सिर पर कलंक का टीका लगाये ! ॥१९॥
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*जाति मांहि बाहरि कीयौ, जब उपजी औलादि ।*
*तासौं कोऊ ना मिलै, जनम गमायौ बादि ॥२०॥*
जब उसको मायादासी से पुत्र उत्पन्न हुआ तो लोगों द्वारा उसको जाँति-पाँति से बाहर कर दिया गया । यों लोगों ने उसका समाज से बहिष्कार कर उससे मिलना जुलना भी छोड़ दिया । इस तरह समाज से बहिष्कृत होकर उसने पाप कमाकर अपना जीवन व्यर्थ ही खो दिया ॥२०॥
(क्रमशः)
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