बुधवार, 24 मई 2017

= ६० =

卐 सत्यराम सा 卐
बार बार यह तन नहीं, नर नारायण देह ।
दादू बहुरि न पाइये, जन्म अमोलिक येह ॥ 
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साभार ~ Chetna Kanchan Bhagat

उठो जागो इसके पहले कि आंखें आंसुओं से भर जायें और हृदय केवल राख का एक ढेर रह जाये, जागो ! इसके पहले कि जीवन हाथ से बह जाये, छिटक जाये, उठो ! 
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अवसर को मत खोओ ! जीवन अल्प है। उसे व्यर्थ में मत गंवा दो। मंदिर तुम्हारे भीतर है। अगर समय का तुम ठीक उपयोग करना सीख जाओ, सामायिक सीख जाओ--मंदिर में प्रवेश हो जाये।
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समय को संसार में लगाना और समय को संसार से मुक्त कर लेना--बस दो आयाम हैं। समय को संसार से मुक्त करो। समय को संसार की व्यस्तता से मुक्त करो ! सामायिक फलित होगी ! 
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अपने में प्रवेश होगा ! आत्मधन मिलेगा ! आत्मगीत बजेगा ! आत्मा का नर्तन ! तन्मय होकर तुम डूबोगे !

ओशो

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