बुधवार, 24 मई 2017

= ५९ =


卐 सत्यराम सा 卐
दादू अचेत न होइये, चेतन सौं चित लाइ ।
मनवा सूता नींद भर, सांई संग जगाइ ॥ 
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साभार ~ Rajnish Gupta
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*(((((((((( ईश्वर की प्रशंसा ))))))))))*
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एक बार एक राजा के दरबार में एक कवि आया. कवि गुणी और प्रतिभाशाली था पर धन का लोभ या धन की आवश्यकता ने उसे शायद कुछ विवश कर रखा था.
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राजा का संकेत मिलते ही कवि ने राजा की प्रशंसा में कविताएं सुनानी शुरू कर दीं. राजा खुश हो गया. फिर कवि का ध्यान राजसभा में उपस्थित महारानी की ओर गया.
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उसने सोचा इसका लाभ भी ले लिया जाए. अब उसने रानी की प्रशंसा में कविताएँ सुनानी शुरू कीं. रानी भी उसकी कविता से प्रभावित और प्रसन्न थीं. कवि ने राजा-रानी दोनों का दिल जीत लिया था.
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राजा ने मंत्री से पूछा कि इस विद्वान कवि ने हमें प्रसन्न किया है. राजा इतना प्रसन्न था कि वह कवि को दरबार में जगह तक दे सकता था. पर उसने मंत्री से ही कवि के योग्य उचित ईनाम पूछ लिया.
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मंत्री कुछ चुप रहा. राजा को मंत्री की बुद्धिमता पर अटूट विश्वास था. उसके परामर्श के बिना निर्णय नहीं करता था. मंत्री था भी उस योग्य. राजा ने दोबारा पूछा.
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तो मंत्री ने अनमने मन से कहा- महाराज, इन्होंने आपको और महारानी को अपनी रचना और मधुर गीत से प्रसन्न कर लिया है. आपको जो उचित लगे वह पुरस्कार इन्हें दें. इस विषय पर मेरा निर्णय शायद अच्छा न हो.
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अब तो राजा का कौतूहल बढ़ गया. एक कवि को ईनाम देने की साधारण सी बात पर मंत्री ऐसी बात क्यों कह रहा है, हो न हो कुछ गहरी बात जरूर है.
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उसने घोषणा की कि अब मंत्री जो पुरस्कार निर्धारित करेंगे वही पुरस्कार इस कवि को दे दिया जाएगा. कवि ने बड़ी आशा की दृष्टि से मंत्री की ओर देखा.
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उसे अफसोस हो रहा था कि यदि उसे मंत्री के इस प्रभाव का पता होता तो वह कुछ प्रशंसा उसकी भी कर देता. फिर भी यदि यह राजा जितना पुरस्कार नहीं भी देगा पर राजा के प्रशंसक को कुछ मूल्यवान तो देगा ही.
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अभी वह इन ख्यालों में ही था कि मंत्री ने अचानक कहा- महाराज मेरा निर्णय है कि इस कवि को चार जूते लगाए जाएं.
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कवि पर तो बिजली गिर गई. राजा और रानी की प्रशंसा करने वाले को जूते पड़ेगें, यह सोच कर राजा, रानी समेत सभी दरबारियों की आंखें फटी की फटी रह गईं.
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राजा ने तो घोषणा कर दी थी. चाहकर भी निर्णय से पीछे हट नहीं सकते थे. कवि को पांच जूते लगा कर छोड दिया गया.
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कवि बहुत दुखी हुआ. उसे मंत्री पर बड़ा क्रोध आया. राजा पर भी क्रोधित था कि ऐसे मूर्खों को मंत्री बनाया है.
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कवि ने मन ही मन सोचा कि आज या तो मैं रहूंगा या यह मंत्री. वह मंत्री की हत्या का विचार करने लगा. शाम को जब मंत्री अपने घर की ओर चला तो कवि भी पीछे-पीछे चल पडा.
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मंत्री घर पहुंचा और अपनी पत्नी को आज राजसभा में हुई घटना सारी घटना पत्नी को बताने लगा और बोला कि मुझे बहुत दुख है एक विद्वान जिस पर माता सरस्वती की कृपा है उसके साथ यह सब करना पडा.
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पत्नी ने पूछा कि इसमें विवशता की क्या बात थी जो आपने एक योग्य कवि का अपमान किया ?
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मंत्री बोला- परमात्मा ने उस कवि को बहुत सुंदर बुद्धि और मधुर आवाज दी है. सरस्वती ने उसमें इतने गुण भर दिए हैं कि वह इस राज्य का सम्मानित मंत्री बनने के योग्य है.
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ऐसे राजा उसके सम्मान में अगवानी करें ऐसी प्रतिभा और कला से युक्त है वह गायक कवि. परंतु उसने अपना मोल ही नहीं समझा. आज वह एक राजा की चाटुकारिता कर रहा था.
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यदि आज मैं उसे पुरस्कार दिला देता तो वह ज्यादा से ज्यादा पुरस्कार की आस में अपनी कला का प्रयोग सिर्फ राजा रानी की प्रशंसा करने में ही लगाता रहता.
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इसके बाद जो राजा बनता फिर वह उसकी चाटुकारिता करता जीवन बिता देता. इसकी संताने फिर उस कार्य में लग जातीं.
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मंत्री ने पत्नी को कहा- मैं स्वयं कवि का प्रशंसक हूं इसलिए पांच जूते लगवा कर मैंने उसे नर्क में जाने से बचा लिया है.
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पत्नी ने पूछा- पांच जूते लगाकर नर्क की राह पर जाने से आपने रोका ! वह कैसे, साफ-साफ बताइए.
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मंत्री ने बताया- कवि सबसे पहले ईश्वर की प्रशंसा करता है. इसने तो राजा को ही ईश्वर मान लिया. भगवान की प्रशंसा में तो एक शब्द न कहे और राजा-रानी के लिए गाता चला गया.
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उसने जब आज ईश्वर की प्रशंसा का एक शब्द भी नहीं बोला तो मुझे लगा कि उसे इस अपराध की छोटी सी सजा देकर मुक्ति करा दी जाए.
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ईश्वर से विमुख होने पर यहां तो उसे बस पांच जूते ही लगे और छूट गया, वहां ईश्वर के लोक में तो पता नहीं कितनी सजा पाता क्योंकि सभी को बनाने वाला वह ईश्वर है.
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ईश्वर ने ही राजा और रानी को बनाया है. कवि ने ईश्वर द्वारा बनाए लोगों की प्रशंसा तो की लेकिन उसको भूल गया जिसने सबको बनाया है. अपनी चाटुकारिता से वह ऐसे राजा को पथभ्रष्ट भी तो कर सकता है.
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इसका दंड मिलता तो अलग. अब बताओ क्या पांच जूते लगवाकर मैंने उसे नर्क जाने से नहीं रोका.
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बाहर खडे कवि ने सुना तो रोने लगा ओर मंत्री के सामने आकर पैर पकड लिए. आज के बाद मैं सिर्फ ईश्वर की महिमा गाऊंगा. आपने बड़े अपराध से मुझे बचा लिया.
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ईश्वर की प्रशंसा में यदि समर्पित हैं तो आपकी कला की भी एक न एक दिन पहचान होगी और सम्मान भी मिलेगा. 
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हो सकता है उस सम्मान में विलंब हो जाए पर वही स्थाई होगा. राजा के संरक्षण का सम्मान स्थाई कैसे होगा क्योंकि पृथ्वी की सत्ता बदलती रहती है, ईश्वर की नहीं.
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(((((((((( जय जय श्री राधे ))))))))))
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