शनिवार, 13 मई 2017

= पच्ञप्रभाव(ग्रन्थ ९/११-२)

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*= पच्ञप्रभाव(ग्रन्थ ९) =*
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*सो वह उत्तम जानिये, जाक़े नीति बिचार ।*
*सुन्दर बंदै लोक सब, यह उत्तम व्यौहार ॥११॥*
महाराज श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं--जो रीति-नीति का विचार करते हुए, विवेक से काम लेते हुए भक्ति युवती से ही काम रखते हैं दासी से दासी की तरह ही व्यवहार करते हैं--ऐसे सन्त जनों का तीनो लोकों में सर्वत्र सम्मान होता है, इनके इस उत्तम व्यवहार से सब उन्हें प्रणाम करते हैं ॥११॥
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*=२. मध्यम सन्त वर्णन =*
*जो दासी कौं आदरै, जुवती सौं अति नेह ।*
*दोऊ घर मांहीं रहै, सुनहु बिचार सु येह ॥१२॥*
परन्तु कुछ साधु जन ऐसे भी होते हैं जो भक्ति युवती से अत्यन्त स्नेह करते हुए माया दासी का भी आदर करते हैं । दोनों को ही गृहणी की तरह सम्मान देते हैं । उनके बारे में हमारी धारणा यह है ॥१२॥
(क्रमशः)

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