गुरुवार, 18 मई 2017

= सूक्ष्म जन्म का अंग =(११/७-९)


#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
*श्री दादू अनुभव वाणी* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*सूक्ष्म जन्म का अँग ११*
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निश वासर यहु मन चले, सूक्ष्म जीव सँहार । 
दादू मन थिर कीजिये, आतम लेहु उबार ॥ ७ ॥ 
यह मन रात - दिन निरन्तर एक विषय से दूसरे विषय पर और एक सँकल्प से दूसरे सँकल्प पर जाता रहता है । यही जीवों का सूक्ष्म सँहार है । अत: मन को परब्रह्म में स्थिर करके, मन की स्थिरता के द्वारा जीवात्माओं को सूक्ष्म सँहार से बचावें, तब ही पूर्ण अहिँसक हो सकते हैं । यह साखी जीव दया के प्रसंग में ढूंढ़िये जैन सन्तों को कही थी । उन्होंने नत मस्तक होकर इसे स्वीकार किया था । 
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कबहूं पावक कबहूं पाणी, धर अम्बर गुण बाइ । 
कबहूं कुंजर कबहूं कीड़ी, नर पशुवा ह्वै जाइ ॥ ८ ॥ 
कभी अग्नि के गुण रूप में, कभी जल के गुण रस में, कभी पृथ्वी के गुण गँध में, कभी आकाश के गुण शब्द में और कभी वायु के गुण स्पर्श में आसक्त होता है । कभी हस्ति के प्रधान गुण काम के अधीन होता है । कभी दूसरों के छिज् खोजना रूप छींटी के गुण में संलग्न होता है और बहिर्मुख होकर पशु - तुल्य हो जाता है, इसीलिए मानव अपने उक्त सूक्ष्म जन्मों को और उनसे उद्धार होने के उपाय को नहीं जान पाता । 
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*करणी बिना कथनी* 
शूकर श्वान सियाल सिंह, सर्प रहें घट माँहि । 
कुंजर कीड़ी जीव सब, पाँडे जानैं नाँहि ॥ ९ ॥ 
इति सूषिम जन्म का अँग समाप्त ॥ ११ ॥ सा - ११४५ ॥ 
९ में कह रहे हैं - साधन रूप कर्त्तव्य के बिना केवल शास्त्र कथन करने वाले पँडित सूक्ष्म जन्मों को नहीं जान सकते । अग्रान - ग्रहण वृत्ति रूप शूकर, ईर्ष्या वृत्ति रूप श्वान, भय वृत्ति रूप सियार, शौर्य वृत्ति रूप सिंह, कोप वृत्ति रूप सर्प, काम वृत्ति रूप हस्ति और छिद्रान्वेषण वृत्ति रूप छींटी इत्यादि वृत्ति रूप सभी सूक्ष्म प्राणी शरीर के भीतर अन्त:करण में जन्मते मरते रहते हैं, किन्तु इस सूक्ष्म जन्म - मरण को अन्तरँग साधन हीन बहिर्मुख केवल शब्दार्थ जानने वाले पँडित लोग नहीं जान पाते । 
इति श्री दादू गिरार्थ प्रकाशिका सूक्ष्म जन्म का अँग समाप्त: ॥ ११ ॥
(क्रमशः)

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