बुधवार, 17 मई 2017

= ४८ =

卐 सत्यराम सा 卐
सब कुछ व्यापै राम जी, कुछ छूटा नांही ।
तुम तैं कहाँ छिपाइये, सब देखो मांही ॥ 
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साभार ~ Bishnu Dev Sahu
दोस्तों, एक बार भगवान विष्णु जी को शेषनाग पर बैठे बैठे धरती पर घूमने का विचार आया, वैसे भी कई साल बीत गये थे धरती पर आये हुए, और वह अपनी यात्रा की तैयारी में लग गये, स्वामी को तैयार होता देख कर लक्ष्मी माँ ने पुछा – स्वामी, आज सुबह सुबह कहाँ जाने कि तैयारी हो रही है ? विष्णु जी ने कहा – देवी, मैं धरती लोक पर घूमने जा रहा हुं। कुछ सोच कर लक्ष्मी माँ ने कहा - हे देव, क्या मै भी आप के साथ चल सकती हुं? भगवान विष्णु ने दो पल सोचा फिर कहा – एक शर्त पर तुम मेरे साथ चल सकती हो, तुम धरती पर पंहुँच कर उत्तर दिशा की ओर बिलकुल मत देखना।
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सुबह सुबह माँ लक्ष्मी और भगवान विष्णु धरती पर पहुँच गये, अभी सूर्य देवता निकल रहे थे, चारों ओर हरियाली ही हरियाली थी। उस समय चारों ओर बहुत शान्ति थी, और धरती बहुत ही सुन्दर दिख रही थी, माँ लक्ष्मी मन्त्र मुग्ध हो कर धरती को देख रही थी, और भूल गई कि पति को क्या वचन दे कर आई हैं? चारो ओर देखती हुयी कब उत्तर दिशा की ओर वो देखने लगीं पता ही नहीं चला।
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उत्तर दिशा मैं माँ लक्ष्मी को एक बहुत ही सुन्दर बगीचा नजर आया, और उस तरफ़ से भीनी भीनी खुशबु आ रही थी और बहुत ही सुन्दर सुन्दर फूल खिले थे, यह एक फूलो का खेत था, और मां लक्ष्मी बिना सोचे समझे उस खेत में गई और एक सुंदर सा फूल तोड़ लाई। लेकिन यह क्या, जब माँ लक्ष्मी भगवान विष्णु के पास वापस आई तो भगवान विष्णु की आंखो में आंसु थे और भगवान विष्णु ने माँ लक्ष्मी को कहा कि कभी भी किसी से बिना पुछे उस का कुछ भी नहीं लेना चाहिये और साथ ही अपना वचन भी याद दिलाया।
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माँ लक्ष्मी को अपनी भूल का पता चला तो उन्होंने भगवान विष्णु से इस भूल की क्षमा मांगी, तो भगवान विष्णु ने कहा कि तुमने जो भूल की है उस की सजा तो तुम्हे जरुर मिलेगी, जिस माली के खेत से तुम ने बिना पुछे फूल तोड़ा है, यह एक प्रकार की चोरी है, इस लिये अब तुम तीन साल तक माली के घर नौकर बन कर रहॊ, उस के बाद मैं तुम्हे बैकुण्ठ में वापस बुलाऊंगा। माँ लक्ष्मी ने चुपचाप सर झुका कर हां कर दी ।
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और माँ लक्ष्मी एक गरीब औरत का रुप धारण करके, उस खेत के मालिक के घर गई जिसके मालिक का नाम माधव था, माधब की पत्नी, दो बेटे ओर तीन बेटियां थी, सभी उस छोटे से खेत में काम करके किसी तरह से गुजारा करते थे।
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माँ लक्ष्मी जब एक साधारण और गरीब औरत बन कर माधव के झोपड़े पर गई तो माधव ने पुछा – बहन तुम कौन हो ? और तुम्हें क्या चाहिये ? माँ लक्ष्मी ने कहा – मैं एक गरीब औरत हूँ, मेरी देख भाल करने वाला कोई नहीं, मैंने कई दिनों से खाना भी नहीं खाया, मुझे कोई भी काम दे दो, साथ में मैं तुम्हारे घर का काम भी कर दिया करुँगी, बस मुझे अपने घर में एक कोने में आसरा दे दो ?
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माधव बहुत ही अच्छे दिल का मालिक था, उसे दया आ गई, लेकिन उस ने कहा – बहन, मैं तो बहुत ही गरीब हुं, मेरी कमाई से मेरे घर का खर्च मुश्किल से चलता है, लेकिन अगर मेरी तीन की जगह चार बेटियां होती तो भी मुझे गुजारा करना था, अगर तुम मेरी बेटी बन कर जैसा रुखा सुखा हम खाते हैं, उस में खुश रह सकती हो तो बेटी अन्दर आ जाओ।
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माधव ने माँ लक्ष्मी को अपने झोपडे में शरण दे दी और माँ लक्ष्मी तीन साल तक उस माधव के घर पर नौकरानी बन कर रही। जिस दिन माँ लक्ष्मी माधव के घर आई थी, उस के दुसरे दिन से ही माधव को इतनी आमदनी होने लगी की की शाम को एक गाय खरीद ली, फ़िर धीरे धीरे माधव ने काफी जमीन खरीद ली, और सब ने अच्छे अच्छे कपड़े भी बनवा लिये और फिर एक पक्का घर भी बनवा लिया। बेटियों ओर पत्नी ने गहने भी बनवा लिये।
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माधव हमेशा सोचता था कि मुझे यह सब इस महिला के आने के बाद मिला है, इस बेटी के रुप में मेरी किस्मत आ गई है और अब कई साल बीत गये थे, लेकिन माँ लक्ष्मी अब भी घर में और खेत में काम करती थी। एक दिन माधव जब अपने खेत से काम खत्म करके घर आया तो उस ने अपने घर के सामने द्वार पर एक देवी स्वरुप गहनों से लदी एक औरत को देखा, ध्यान से देख कर पहचान गया अरे यह तो मेरी मुहं बोली चौथी बेटी यानि वही औरत है, ओर आखिर में पहचान गया कि यह तो माँ लक्ष्मी है।
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अब तक माधव का पुरा परिवार बाहर आ गया था और सब हैरान हो कर माँ लक्ष्मी को देख रहे थे, माधव बोला – हे माँ, हमें माफ कर दो। हम ने आपसे अनजाने में ही घर और खेत में काम करवाया, हे माँ, यह कैसा अपराध हो गया, माँ हम सब को माफ कर दो।
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माँ लक्ष्मी मुस्कुराई ओर बोली – हे माधव तुम बहुत ही अच्छे ओर दयालु व्यक्त्ति हो, तुम ने मुझे अपनी बेटी की तरह से रखा, अपने परिवार के सदस्य की तरह से, इस के बदले मैं तुम्हें वरदान देती हूँ कि तुम्हारे पास कभी भी खुशियों की और धन की कमी नहीं रहेगी, तुम्हें सारे सुख मिलेंगे, जिसके तुम हकदार हो, और फ़िर माँ अपने स्वामी के द्वारा भेजे रथ में बैठ कर बैकुण्ठ चली गई।
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दोस्तों, इस कहानी में मां लक्ष्मी का संदेश है कि जो लोग दयालु ओर साफ दिल के होते हैं, मैं वहीँ निवास करती हुं, हमें सभी मनुष्यों की मदद करनी चाहिये और गरीब से गरीब को भी तुच्छ नहीं समझना चाहिये।
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शिक्षा – इस कहानी में लेखक यही कहना चाहता है कि एक छोटी सी भूल पर भगवान ने माँ लक्ष्मी को सजा दे दी फिर हम तो बहुत ही तुच्छ हैं, फिर भी भगवान हम पर अपनी कृपा रखते हैं, इसीलिए हमें भी हर इंसान के प्रति दयालुता दिखानी चाहिये क्योंकि यह दुख और सुख हमारे ही कर्मो का फल है ।

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