शनिवार, 20 मई 2017

= पच्ञप्रभाव(ग्रन्थ ९/२३-४)

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= पच्ञप्रभाव(ग्रन्थ ९) =*
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*सत्व रजो तम तीनि गुन, तिनि कौ यह व्यौहार ।*
*उत्तम मध्यम अधम अध, कहे सु चारि प्रकार ॥२३॥*
शास्त्र में सत्व, रज, तम--तीन गुण कहे हैं । उन्हीं के कारण ये सन्तों की चार प्रकार की श्रेणियाँ बनती है । सत्वप्रधान सन्त उत्तम कहलाता है । रजोगुण, मिश्रित सत्वगुणप्रधान सन्त मध्यम कहलाता है । रजोगुणप्रधान सन्त कनिष्ठ(अधम) कहलाता है । तथा तमोगुणप्रधान सन्त(जिसका लेशमात्र भी भक्ति का साथ नहीं होता जो दिन-रात माया के चक्कर रहता है, केवल पाखण्डवश सन्तों का बाना धरण किए हुए है) अधमाधम(नीचातिनीच) कहलाता है ॥२३॥
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*तीन भक्ति चौथौ जगत, फेर सार कछु नांहि ।*
*तीन भजैं भगवंत कौ, चौथो भव जल माँहि ॥२४॥*
उपरिवर्णित चार प्रकार की श्रेणियों में तीन सन्त तो किसी प्रकार भक्ति श्रेणि में आ सकते हैं; परन्तु चतुर्थ श्रेणि(अधमाधम) वाले सन्त को क्या कहा जाय, वह तो जगत्(तमोमय संसार) है, वह निस्तत्व है । ये तीन सन्त तो किसी तरह भगवान के भजन में थोड़ा-बहुत समय देते भी हैं, अतः भक्त कहलाने के अधिकारी हैं; परन्तु चौथा तो सन्त के नाम पर कलंक है । उसे तो भवसागर में डूबते-उतराते रहना है । उस का मोक्ष क्या कभी होगा ! ॥२४॥
(क्रमशः)

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