शुक्रवार, 5 मई 2017

= विन्दु (२)९९ =

#daduji
॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू चरितामृत(भाग-२)* 
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
.
*= विन्दु ९९ =*
.
सब संतों तथा सभी भक्तों ने एक स्वर से कहा - महोत्सव अवश्य करना है और दादूजी महाराज के अनुरूप ही करना है । उनका सिद्धांत एक देशीय नहीं था । अतः सभी संप्रदायों को निमंत्रण दिया जाय और सभी के साथ समता का व्यवहार किया जाय । जो जिस ढंग से आये और जैसे खाये पीये उसका उसी प्रकार प्रबन्ध किया जाय । स्वयं पाकियों को सामान दिये जाने का प्रबन्ध होना चाहिये और बनी बनाई रसोई जीमे उनको बनाकर जिमाना चाहिये तथा उस समय कोई गरीब आदि आयें उन सभी को भोजन देने का प्रबन्ध होना चाहिये । समाप्ति पर सब संतों को चादर भी देनी चाहिये । इत्यादिक सभी विचार उस सभा में हो गया । 
.
उसी समय नारायणसिंह नारायणा नरेश के सहित जितने भी आसपास के खांगारोत क्षत्रिय थे उन सबने एक मत से कहा - दादूजी महाराज के महोत्सव में हम सब तन मन धन से पूर्ण सहयोग देंगे, महाराज का भंडारा उनके अनुरूप ही होना चाहिये । फिर जो भी वहां उपस्थित थे उन सभी संतों और भक्तों ने भी उक्त क्षत्रियों के समान ही वचन दिया । 
.
महोत्सव का समय नियत किया गया जयेष्ठ शुक्ला पांचैं से आषाढ़ तक एक मास तक पूर्ण रूप से महोत्सव किया जाय । ज्येष्ठ शुक्ला पांचैं से पूर्व ही सब व्यवस्था कर दी जाय । अभी ही जिस कार्य के लिये जो योग्य समझा जाय । उसे उस कार्य के लिये नियत कर दिया जाय । जिससे वह अपना कार्य सुचारू रूप से करने की व्यवस्था कर सके । दादूजी महाराज के भक्त अकबर बादशाह, आमेर नरेश मानसिंह, करोली नरेश, बीरबल और रियां नरेश आदि छोटे-छोटे राजाओं तथा अन्य श्रीमानों और सर्व साधारण भक्तों को महाराज के महोत्सव संबन्धी पत्रों के लिखने की व्यवस्था आज ही कर दी जाय । जिससे महोत्सव आरंभ से पूर्व ही सब को सूचना मिल जाय । इत्यादि सभी बातों का निर्णय इसी सभा में कर लिया गया और निर्णय के अनुसार कार्य भी आरंभ कर दिये गये । 
.
आस पास के लोग उसी दिन से भंडारे के लिये लकड़ियों के गाड़े भर - भरकर लाने लगे और कार्य भी अपनी शक्ति अनुसार आरंभ कर दिये । सबको पत्र लिख दिये गये । पत्रों में लिखा था - 
“यहां विगत ऐसी हुई, स्वामी ब्रह्म समाय । 
सब साधुन ले आइयो, तुम से शोभ सवाय ॥ 
कीर्तन ज्येष्ठ चौथ सुद् धारा, 
पांचैं का का लिखाया भंडारा ॥” 
महन्त चेतनजी कृत. । 
“ठठयो महोच्छो जेठी पूनू” जनगोपाल. । 
इससे सिद्ध होता है मुख्य दिन ज्येष्ठ पूनों रखा था । पत्र मिलने पर सब ही ने अपनी - अपनी योग्यता के अनुसार धन दादूजी के भंडारे के लिए भेजना आरंभ कर दिया और भंडारे के दिनों में नारायणा धाम जाकर सत्संग का लाभ उठाने एवं नाना संतों के दर्शन करने के विचार करने लगे । 
.
इधर भी ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी से चार दिन पूर्व ही सब साधन जुटा लिये गये थे और तभी संत तथा भक्तों का आना भी आरंभ हो गया था । कारण, जिनको सेवा में भाग लेना था वे चार दिन पहले आने थे । वे भी तथा अन्य विचरने वाले संत भी चार दिन पहले ही आने लग गये थे । नारायणा में वैसे तो तालाब के चारों ओर संतों के ठहरने लिये प्रबन्ध किया गया था, फिर भी अधिकतर उत्तर की ओर ही अधिक व्यवस्था की गई थी । कारण, उत्तर की ओर भूमि अधिक खाली थी । 
इति श्री दादू चरिताममृत ९९ समाप्तः
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें