शुक्रवार, 5 मई 2017

= अद्भुत उपदेश(ग्रन्थ ८/५२-३) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*= अद्भुत उपदेश(ग्रन्थ ८) =*
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*= गुरु द्वारा समाधान =* 
*तुम पंचनि कौ मन पिता, मन कौ आतम जानि ।* 
*आतम पित परमातमा, ताहि लेहु पहिचानि ॥५२॥*
गुरुदेव ने श्रवनूं आदि पुत्रों को सम्बोधित कर कहा--"तुम्हारा(पाँचों का) पिता मन हैं । पितामह हैं आत्मा(क्योंकि वह तुम्हारे पिता मन का पिता है) । और प्रपितामह है परमात्मा(क्योंकि वह आत्मा का पिता है) । तुम यह बात अच्छी तरह हृदयंगम कर लेना ॥५२॥
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*तब पंचौं मन सौं मिले, मन आतम सौं जाइ ।* 
*आतम परमातम मिले, ज्यौं जल जलहि समाइ ॥५३॥* 
तब वे पाँचों श्रवनूं आदि अपने पितामह से मिले, मन आत्मा से मिला, और आत्मा परमात्मा में उसी तरह मिल गया जैसे जल में जल समा कर(मिल कर) एकमेक हो जाता है ॥५३॥
(क्रमशः)

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