#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*मन का अँग १०*
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पाका काचा ह्वै गया, जीत्या हारै डाव ।
अन्त काल गाफिल भया, दादू फिसले पांव ॥१०६॥
यह मन निर्विषय रूप परिपाकावस्था को प्राप्त होकर भी सूक्ष्म विषय वासना के प्रभाव से पुन: विषयासक्ति रूप कच्छी अवस्था को प्राप्त हो जाता है । यह अपने कामादि विकारों को जीत करके भी मुक्त होने के अवसर पर कामादि से हार जाता है । इस प्रकार अन्तिम सिद्धावस्था के पास पहुंच कर भी सूक्ष्म विषय - वासना के जाग्रत होने से साधक लोग गाफिल होते रहे हैं और उनके सत्य निष्ठा रूप पैर फिसलते रहे हैं । अत: साधक को मन के धोखे से सदा सचेत रहना चाहिए ।
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यहु मन पँगुल पँच दिन, सब काहू का होइ ।
दादू उतर आकाश तैं, धरती आया सोइ ॥१०७॥
सत्संग, क्लेश और शव आदि को देखने से जब वैराग्य हो जाता है तब यह विषयी मन भी कुछ दिन तो प्राय: सभी का विषयाशा रूप चरण - शक्ति से रहित पँगुल हो जाता है और भगवत् चिन्तन में संलग्न रहता है किन्तु फिर भगवत् चिन्तन रूप आकाश से उतर कर विषय - चिन्तन रूप पृथ्वी पर आ जाता है ।
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ऐसा कोई एक मन, मरे सो जीवे नाँहिं ।
दादू ऐसे बहुत हैं, फिर आवें कलि माँहिं ॥१०८॥
कोई एक ज्ञानी सँत का ही ऐसा मन होता है, जो निर्विषय रूप मृत्यु को प्राप्त होकर पुन: विषयासक्ति रूप जीवितावस्था को प्राप्त न हो । ऐसे मन तो बहुत हैं, जो निर्विषय होकर फिर सूक्ष्म विषय - वासना के बल से पाप में पड़ जाते हैं ।
(क्रमशः)
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