मंगलवार, 16 मई 2017

= विन्दु (२)१०० =

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॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू चरितामृत(भाग-२)* 
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*= विन्दु १०० =*
*= भक्तवत्सला =* 
सन्त सुखी होते हैं तो रामजी भी सुखी होते हैं । इससे संतों को खान-पानादि वस्तुयें देकर संतों की इच्छा पूर्ण करते रहते हैं । संतों को कोई व्यथित करता है तो हरि भी व्यथित हो जाते हैं और उन संतों की रक्षा के लिये दौड़कर संतों के पास पहुँच जाते हैं । वही गुरुदेव दादूजी महाराज भी कहते ही हैं - 
“आगे पीछे संग रहैं, आप उठावें भार । 
साधु दुखी तब हरि दुखी, ऐसा सिरजन हार ॥” 
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यद्यपि वेदादिक शास्त्र परमात्मा को सर्व व्यापक कहते हैं, तथापि संतों के बिना उन की प्राप्ति कहीं भी नहीं होती है जैसे गाय का दूध स्तनों से ही मिलता है, वैसे प्रभु की प्राप्ति भी संतों द्वारा ही होती है, अन्यथा नहीं होती है । वही गुरुदेव दादूजी महाराजने भी श्रीमुख से कहा है -
“ब्रह्म गाय त्रय लोक में, साधू अस्तन पान । 
मुख मारग अमृत झरे, कित ढूंढे दादू आन ॥” 
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अतः प्रभु को प्राप्त करने के लिये संतों का सत्संग अवश्य करते रहना चाहिये । मेरा तो दादूजी महाराज के वचनों के अनुसार यही अनुरोध है और आप सब संत भी इस विषय के पूरे पूरे जानकार हैं । सो हम दादूजी महाराज के उपदेशों के अनुसार चलते हुये भक्त जनता को भी ऐसा ही उपदेश करते रहें तथा सर्व साधारण को ईश्वर नाम में और ईश्वर में दृढ़ विश्वास कराने का यत्न करते रहें । यही हमारा कर्तव्य है । इसको कभी भी नहीं भूलना चाहिये ।
(क्रमशः)

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