गुरुवार, 25 मई 2017

श्री गुरूदेव का अंग ३(१-४)


卐 सत्यराम सा 卐
*दादू कहै सतगुरु शब्द सुनाइ करि, भावै जीव जगाइ ।*
*भावै अन्तरि आप कहि, अपने अंग लगाइ ॥* 
===============================
साभार विद्युत संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi
**श्री रज्जबवाणी** 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥

**श्री गुरूदेव का अंग ३**

भेंट अंग के अनन्तर गुरु की विशेषतादि बताने के लिये गुरुदेव का अंग कह रहे हैं ।
.
रज्जब रहिये राम में, गुरू दादू के सु प्रसाद ।
नातर जाता देखतो, जन्म अमोलक बाद ॥ १ ॥
१-१८ में गुरु की विशेषता बता रहे हैं - श्री दादू जी के कृपा प्रसाद से संसार - प्रवाह मे जाने से रूक कर राम के चिन्तन मे लग गये हैं, यदि दादू जी नहीं मिलते तो देखते देखते ही अमूल्य नर जन्म व्यर्थ ही चला जाता ।
.
दादू दीन दयालु गुरू, सो मेरे शिर मौर ।
जन रज्जब उनकी दया, पाई निश्चल ठौर ॥ २ ॥
जो दीनों पर दया करने वाले गुरू देव दादू जी हैं, वे ही मेरे शिर के मुकट हैं । उनकी दया से ही मुझ दास ने निश्चल ब्रह्म रूप स्थान प्राप्त किया है ।
.
जन रज्जब युग युग सुखी, गुरू दादू की दाति१ ।
आप समागम कर लिये, भयी निरंजन जाति२ ॥ ३ ॥
गुरू दादू जी के उपदेश रूप दान१ से हम शिष्य युग युग प्रति सुखी रहेंगे । कारण उस उपदेश ने हमें अपने स्वरूप ब्रह्म से मिलाकर ब्रह्म ही बना दिया है । अब हमारी भी सत्ता२ निरंजन ब्रह्म रूप ही हो गई है ।
.
गुरु दादू सौ गम१ भयी, समझ्या सिरजनहार । 
रज्जब राते राम से, छूटे विषय विकार ॥ ४ ॥ 
गुरु दादू जी की कृपा से हमारा परमार्थ में प्रवेश१ हुआ तथा परमात्मा का स्वरूप समझ में आया । अब हमारे हृदय से सभी विकार हट गये हैं हम राम के वास्तव स्वरूप में ही अनुरक्त रहते हैं । 
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें