मंगलवार, 30 मई 2017

श्री गुरूदेव का अंग ३(१३-६)

#daduji

卐 सत्यराम सा 卐
*दादू सतगुरु अंजन बाहिकर, नैन पटल सब खोले ।*
*बहरे कानों सुणने लागे, गूंगे मुख सौं बोले ॥* 
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साभार ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi
**श्री रज्जबवाणी** 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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**श्री गुरूदेव का अंग ३**
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तलब४ तसल्ली३ तालिबाँ२, दादू की दरगाह१ ।
रज्जब रज६ मा५ पाइये, हाफू८ कुली७ गुनाह ॥ १३ ॥
दादू जी के सत्संग - दरबार१ में शिष्यों२ की इच्छा३ पूर्ति रूप संतोष४ होता है और अन्त: करण के भीतर५ ज्ञान प्रकाश६ होकर सब७ दोष नष्ट८ हो जाते हैं ।
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गुरू दादू देखत कटे, जीव की कोटि जंजीर ।
जन रज्जब मुक्ते किये, पाया पूरा पीर ॥१४ ॥
गुरू देव दादू जी के दर्शन करते ही जीव की कर्म बन्धन रूप कोटि जंजीर कट जाती है । उन्होंने अनेकों को अज्ञान - पिशाच से मुक्त किया है । वे ही पूर्णता को प्राप्त महात्मा दादू जी मुझे प्राप्त हुये हैं ।
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गुरू दादू का ज्ञान सुन, छूटें सकल विकार ।
जन रज्जब दुस्तर तिरहिं, देखै हरि दीदार ॥ १५ ॥
गुरू देव दादू जी का ज्ञानोपदेश श्रवण करने से प्राणियों के सभी दोष छूट जाते हैं और वे दुस्तर संसार से पार होकर परब्रह्म का साक्षात्कार करते हैं ।
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तन त्रिभुवन तम पूरि था, आतम अंध विशेष ।
तहँ रज्जब सूझ्या सकल, दादू दिनकर देख ॥ १६ ॥
शरीर रूप त्रिभुवन में अज्ञान रूप अंधकार परिपूर्ण था, जीवात्मा आत्म - ज्ञाननेत्र विहीन होने से विशेष रूप से अंध ही था किन्तु दादू रूप सूर्य को देखते ही अन्त:करण मे ज्ञान प्रकाश प्रकट होने से ब्रह्म, जीव माया आदि सब का स्वरूप भास ने लग गया है ।
(क्रमशः)

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