卐 सत्यराम सा 卐
*आत्म बोध बँझ का बेटा, गुरु मुखि उपजै आइ ।*
*दादू पंगुल पंच बिन, जहाँ राम तहँ जाइ ॥*
===========================
**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi
.
**श्री गुरूदेव का अंग ३**
.
सद्गुरु की सुन सीख को, उपज्या यही विचार ।
रज्जब रचे सु राम सों, विरचे इहिं संसार ॥२९॥
सद्गुरु के ज्ञानोपदेश को श्रवण करके साधकों के हृदय में राम सत्य है और संसार असत्य है, यही विचार उत्पन्न हुआ । इसी कारण वे संसार से विरक्त होकर राम में ही अनुरक्त हुये अत: बडभागी हैं ।
.
मन समुद्र गुरु कमठ ह्वै, किया जु महणारंभ१ ।
रज्जब बीते बहुत युग, अचल न आतम अंभ२ ॥३०॥
३० - ३६ में गुरु की विशेषता बता रहे हैं - मन रूप समुद्र को गुरु रूप कच्छप ने ज्ञान-रत्न निकालने के लिये मथना१ आरंभ किया बहुत युग बीत गये हैं, किन्तु अभी भी जीवात्मा रूप जल२ स्वस्वरूप स्थिति रूप निश्चलता को प्राप्त नहीं हुआ है फिर भी ज्ञान रत्न निकाले बिना गुरु छोड़ते नहीं । इसमें समुद्र मंथन समय का रूपक दिया है ।
.
गुरु बिन गम३ नहिं पाइये, पिंड प्राण१ पर वेश२ ।
रज्जब गुरु गोविन्द बिन, कौन दिखावे देश ॥३१॥
स्थूल शरीर और सूक्ष्म शरीर१ से परे अपने निज स्वरूप-घर२ को प्राप्त करने का विचार३ गुरु बिना नहीं मिलता । गोविन्द की कृपा और गुरु के ज्ञान बिना स्वस्वरूप-देश को कौन दिखा सकता है ?
.
गुरु बिन गम१ नहिं पाइये, समझ न उपजे आय ।
रज्जब पंथी पंथ बिन. कौन दिसावर२ जाय ॥३२॥
गुरु बिना परमेश्वर के ध्यान१ करने की युक्ति नहीं मिलती और हृदय में ब्रह्म-ज्ञान भी उत्पन्न नहीं हो सकता । जैसे पथिक पंथ बिना किसी भी विदेश२ को नहीं जा सकता, वैसे ही साधक ब्रह्म ज्ञान बिना संसार दशा रूप देश से ब्रह्म-स्थिति रूप प्रदेश में नहीं जा सकता ।
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें