शनिवार, 3 जून 2017

= गुरुसम्प्रदाय(ग्रन्थ १०/२१-२) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*= गुरुसम्प्रदाय(ग्रन्थ १०) =*
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*तिनकौ गुरु अब कहौं बिचारी ।* 
*विद्यानन्द चतुर अति भारी ।* 
*एक ब्रह्म बिद्या उर जाकै ।* 
*और अविद्या रही न ताकै ॥२१॥* 
अब सोचकर उनके भी गुरु का नाम बताता हूँ । वह नाम है - श्रीविद्यानन्द वे योगजगत् में अत्यन्त प्रवीण और एकान्ततः ब्रह्मविद्या के ही हृदय से उपासक थे । अविद्याएँ उनके पास भी नहीं फटकती थीं ॥२१॥ 
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*तिनकौ गुरु है परम प्रवीना ।* 
*नेमानन्द नेम यह लीना ।* 
*नारायण बिन और न भावै ।* 
*याही नेम निरंजन ध्यावै ॥२२॥* 
उनके भी गुरु थे परमचतुर महाराज नेमानन्दजी । इन्होंने यह नियम-व्रत ले रखा था कि भगवान् के अतिरिक्त मैं किसी अन्य का ह्रदय से चिन्तन नहीं करूँगा । इस नियम-व्रत के कारण वे निरन्तर निराकार ब्रह्म की उपासना में ही लगे रहते थे ॥२२॥ 
(क्रमशः)

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