शनिवार, 3 जून 2017

= माया का अंग =(१२/४१-२)

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
*श्री दादू अनुभव वाणी* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*माया का अँग १२*
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विष सुख माँहीं रम रहे, माया हित चित लाइ ।
सोइ सँत जन ऊबरे, स्वाद छाड़ गुण गाइ ॥ ४१ ॥
सभी अज्ञानी प्राणी मायिक पदार्थों में हित की दृष्टि से चित्त लगाकर विष तुल्य विषय - सुख में ही रम रहे हैं । जो इन्द्रिय स्वादों की इच्छा को छोड़ कर गोविन्द - गुण - गान में रत हैं, वे ही सँतजन इस माया से बचते हैं ।
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*आसक्तता मोह*
दादू झूठी काया झूठ घर, झूठा यहु परिवार ।
झूठी माया देखकर, फूल्यो कहा गंवार ॥ ४२ ॥
४२ में मोह वश विषयासक्त को चेतावनी दे रहे हैं - हे अज्ञानी ! यह शरीर, घर, परिवार और धन मिथ्या हैं ! इन्हें देखकर तू क्यों फूल रहा है ?
(क्रमशः)

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