बुधवार, 16 अगस्त 2017

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卐 सत्यराम सा 卐
*दादू खोजि तहाँ पीव पाइये, सबद ऊपने पास ।*
*तहाँ एक एकांत है, जहाँ ज्योति प्रकास ॥* 
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साभार ~ oshoganga.blogspot.com

मनुष्य के जीवन में प्रकाश होना चाहिए। और प्रकाश मौजूद भी है, केवल मिट्टी के दीये से सम्बन्ध टूट जाये; और मनुष्य ये जान ले कि मैं ये मृण्मय शरीर नहीं हूं, मैं चिन्मय आत्मा हूं। मनुष्य की दृष्टि दीये पर जड़ हो गई है, क्योंकि मनुष्य ये सोचता है कि यदि दीया न रहा; तो ज्योति बुझ जायेगी। ये ही भ्रान्ति है।
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वह ज्योति कभी बुझने वाली नहीं है। जब ये शरीर न था तब भी वह थी। मां के गर्भ में आने से पहले भी वह ज्योति संचरण कर रही थी। पिछले जन्म में मृत्यु हुयी,तब मिट्टी का दीया छूट गया; ज्योति मुक्त हो गई उस देह से,फिर इसने नए गर्भ में प्रवेश किया। मनुष्य यही ज्योति है,जो जन्मों-2 से अनंत की यात्रा पर निकली है; जिसकी यात्रा का कोई अंत नहीं है,न जाने कितने घरों में मेहमान हुयी। वे घर सब छूट गए, ये अब भी है।
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धर्म की सारी खोज ये ही है कि भीतर उस तत्व की पहचान हो जाये जो शाश्वत है, अमृत है और कभी मिटता नहीं। उसकी पहचान होते ही मनुष्य दीये का मोह छोड़ देता है, फिर मनुष्य मरणधर्मा को नहीं पकड़ता। फिर मनुष्य अमृत में आनंदमग्न हो जाता है। और ज्योति की पहचान होते ही दीये तले अंधेरा समाप्त हो जाता है।
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जब तक दीये के साथ ऐक्य है, तब तक तो अंधेरा अवश्य रहेगा। और दीये के साथ यदि एकात्मता इतनी सध गई है कि ज्योति को एकदम भुला ही दिया है, तो अंधेरा ही अंधेरा होगा।

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