रविवार, 17 सितंबर 2017

= साँच का अंग =(१३/११५-७)

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*साँच का अंग १३* 
दादू दोन्यों भरम हैं, हिन्दू तुरक गंवार ।
जे दुहुवां तैं रहित है, सो गह तत्व विचार ॥११५॥
हे अज्ञानी ! हिन्दू - पना और तुरक - पना दोनों बुद्धि की कल्पना होने से भ्रम रूप हैं, जो दोनों से रहित आत्म - तत्व है, वही विचार द्वारा ग्रहण कर ।
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अपना अपना कर लिया, भँजन माँहीं बाहि ।
दादू एकै कूप जल, मन का भरम उठाहि ॥११६॥
जैसे एक ही कूप जल को अपने - अपने बर्तनों में भरकर अपना - अपना कहने लगते हैं, वैसे ही एक आत्मा में शरीर भेदों से जाति की कल्पना कर लेते हैं । यह मन का भ्रम है, इसे त्याग देना चाहिए ।
दादू पानी के बहु नाम धर, नाना विधि की जात ।
बोल णहारा कौन है, कहो धौं कहां समात ॥११७॥
जैसे एक ही कूप जल के ब्राह्मण - जल आदि बहुत नाम रख लेते हैं, वैसे ही एक आत्मा में नाना प्रकार की जाति की कल्पना कर लेते हैं । किन्तु हे भ्रान्त लोगो ! कहो तो सही, इन सब शरीरों में बोल ने वाला चेतन आत्मा कौन जाति का है और अन्त में कहां समाता है ? अर्थात् आत्मा की कोई जाति नहीं, वह सब शरीरों में एक है और अज्ञान बन्धन कटने पर जाति रहित ब्रह्म में ही समाता है ।
(क्रमशः)

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