#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*मध्य का अँग १६*
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चलु दादू तहं जाइये, जहं चँद सूर नहिं जाइ ।
रात दिवस की गम नहीं, सहजैं रह्या समाइ ॥१९॥
जहां इस देश के चन्द्र - सूर्य वो इड़ा -
पिंगला, हमारे
रात्रि - दिन वो ज्ञान - अज्ञान आदि नहीं जा सकते, मध्य
निष्पक्ष मार्ग द्वारा चल कर हमें उस ब्रह्म - देश में जाना चाहिए । जो भी वहां
गया है, वह अनायास उसी में समाकर उसी का रूप होकर रहा है ।
चलु दादू तहं जाइये, माया मोह तैं दूर ।
सुख दुख को व्यापै नहीं, अविनाशी घर पूर ॥२०॥
जो मायिक - मोह से परे, सब विश्व में परिपूर्ण,
साँसारिक सुख - दुख के प्रभाव से रहित हमारा अविनाशी ब्रह्मरूप घर
है, मध्य मार्ग द्वारा चल कर उसी ब्रह्म में जाना चाहिए ।
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चलु दादू तहं जाइये, जहं जम जौरा को नाँहिं
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काल मीच लागे नहीं, मिल रहिये ता माँहिं ॥२१॥
जहां यम का दँड देना आदि कोई भी बल नहीं
चलता, काल
का भेद वो आयु क्षीण होने का और मृत्यु का भय भी नहीं लगता, मध्य
निष्पक्ष मार्ग द्वारा चलकर वहां ही जाना चाहिए और उसी ब्रह्म में मिल कर रहना
चाहिए ।
(क्रमशः)
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