बुधवार, 27 दिसंबर 2017

= सुमिरण का अंग २०(९-१२) =

卐 सत्यराम सा 卐 
*दादू राम रसाइन नित चवै, हरि है हीरा साथ ।*
*सो धन मेरे साइयां, अलख खजाना हाथ ॥* 
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**श्री रज्जबवाणी** 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi 
*सुमिरण का अंग २०*
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अकलि१ उजास२ अनन्त बल, ऋद्धि सिद्धि मधि नाम । 
रज्जब आवहिं शिव शक्ति, सत सुमिरण जिहिं ठाम ॥९॥ 
ज्ञान१ के प्रकाश२ से देखो तो नाम स्मरण में अनन्त बल है, ऋद्धि सिद्धि नाम स्मरण से मिलती है, जिस स्थान में सत्य ब्रह्म का सम्यक् स्मरण होता है वहाँ माया ओर ब्रह्म दोनों ही आते हैं । अर्थात ब्रह्म साक्षात्कार होता है और मायिक पदार्थों की भी कमी नहीं रहती है । 
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रज्जब अज्जब राम धन, विध्न रहित बहु माल । 
वित१ बे हद जाको मिले, भाग्य भले तिहिं भाल ॥१०॥ 
राम स्मरण रूप अदभुत धन विघ्न रहित है, इसे कोई लूट नहीं सकता, इससे इच्छानुसार बहुत माल मिलता है, जिसको यह असीम धन१ मिलता है, उसका भाग्य विशाल समझना चाहिये । 
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तीन लोक चौदह भुवन, अरु ब्रह्माण्ड इक्कीस । 
सब ठाहर सीझें१ सुमरि, रज्जब रट जगदीस ॥११॥ 
तीनों लोक चौदह भुवन और इक्कीस ब्रह्माण्ड, इन सभी स्थानों में रहने वाले प्राणी ईश्वर स्मरण द्वारा ही सिद्धावस्था१ को प्राप्त हुये हैं । अत: निरंतर जगदीश्वर का स्मरण करना चाहिये । 
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चार युग चहुँ वेद मुख्य, सबै डिढावहिं नाम । 
रज्जब सिध साधक कहै, यहु सीजण की ठाँम ॥१२॥ 
चारों युगों के प्राणियों के उद्धारार्थ चारों वेदों ने विशेषकर नाम स्मरण रूप साधन ही दृढ़ता से करने को कहा है तथा और साधक संत भी मुक्ति रूप सिद्धावस्था को प्राप्त करने के लिये ईश्वर का नाम स्मरण रूप स्थान श्रेष्ठ बताते हैं ।
(क्रमशः)

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