#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*मध्य का अँग १६*
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जब निराधार मन रह गया, आतम के आनन्द ।
दादू पीवे रामरस, भेटै परमानन्द ॥१६॥
जब मन मायिक विषयों के आश्रय से रहित, आत्म - सुख में स्थिर रहने लगता है तब साधक राम - भक्ति - रस पान करके ज्ञान द्वारा परमानन्द को प्राप्त होता है ।
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*माया*
दूहुं बिच राम अकेला आपै, आवण जाण न देई ।
जहं के तहं सब राखे दादू, पार पहुंचे सेई ॥१७॥
१७ में कहते हैं - सन्त को राम ही मध्य - मार्ग में रखते हैं - मायिक प्रपँच और सँत के बीच में स्वयँ अद्वैत राम रहते हैं । मायिक प्रपँच को सन्त के अन्त:करण में नहीं आने देते और सन्त की वृत्ति अपने में ही रोक लेते हैं, मायिक प्रपँच में नहीं जाने देते । इस प्रकार राम बीच में रह कर माया और सन्तों को अपने - अपने स्थान में ही रखते हैं, तब ही सन्त राम की भक्ति द्वारा सँसार के पार पहुंच कर परमानन्द स्वरूप को प्राप्त हुये हैं ।
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*मध्य निष्पक्ष*
चलु दादू तहं जाइये, जहं मरे न जीवे कोइ ।
आवागमन भय को नहीं, सदा एक रस होइ ॥१८॥
१८ - २१ में मध्य मार्ग द्वारा ब्रह्म - देश में जाने की प्रेरणा कर रहे हैं - हे साधको ! निर्विकल्प समाधि - भूमि में एक ब्रह्म देश है । वहां जन्म - मरण और लोकाँतरों में जाने - आने आदि किसी भी प्रकार का भय नहीं है । वहां जो जाता है वह भी सदा एक रस रूप होकर ही रहता है । अत: मध्य निष्पक्ष मार्ग द्वारा चलकर वहां ही जाना चाहिए ।
(क्रमशः)
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