#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*सारग्राही का अँग १७*
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जब जीवन मूरी पाइये, तब मरबा कौन बिसाहि१ ।
दादू अमृत छाड़ कर, कौन हलाहल खाहि ॥२२॥
जब सँजीवनी बूटी प्राप्त हो जाती है, तब मृत्यु कौन मोल१ लेता है ? तथा अमृत को छोड़कर हलाहल विष कौन खाता है ? वैसे ही नाम - स्मरण का आनन्द मिलने पर विषय - सुख कौन चाहता है ?
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जब मानसरोवर पाइये, तब छीलर को छिटकाइ ।
दादू हँसा हरि मिले, तब कागा गये विलाइ ॥२३॥
जब मानसरोवर प्राप्त होता है, तब हँस छोटी तलैया को त्याग देता है । वैसे ही हँस रूपी साधक को जब नाम - स्मरण द्वारा हरि की प्राप्ति होती है, तब काम - क्रोधादिक वासना सेवी मन की काक वृत्ति अपने आप ही नष्ट हो जाती है ।
(क्रमशः)
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